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✍️ लाला कर्णकान्त श्रीवास्तव

एक्स रिपोर्टर न्यूज़ । राजनांदगांव

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय के स्टोर से किए गए दवा खरीदी मामले में सिलसिलेवार तहकीकात जारी है। सूचना का अधिकार के तहत मांगे गए दस्तावेजों से नए-नए तथ्य सामने आ रहे हैं। जो कह रहे हैं कि मामले में छोटी नहीं बल्कि बड़ी गड़बड़ी की गई है। इस गड़बड़ी में तत्कालीन स्टोर प्रभारी से लेकर अधिकारी सब कटघरे में आ चुके हैं। सही तरह से प्रशासनिक जांच हुई तो विभाग के बड़े-बड़े जिम्मेदार नप जाएंगे।

Health reporter@राजनांदगांव: लाखों रुपए कीमत की दवा और मेडिकल सामाग्री खरीदी में बड़ा गोलमाल, टेंडर में भाग लेने वाले एल-1 को छोड़ दूसरे फर्म को दिया सप्लाई आर्डर, कमीशन के इस खेल में CHMO और भंडार क्रय लिपिक की मिलीभगत की आशंका…सूचना का अधिकार में हुआ चौकाने वाला खुलासा…

फिर भी किसी के माथे में एक शिकन तक नहीं है और ऊपर से सीएमएचओ कह रहे हैं कि गुड फेस में सब चलता है…सवाल- यदि गुड फेस में सब चलता है तो फिर सरकारी कार्यों को करने के लिए टेंडर बुलाने और प्रक्रिया में समय व पैसा बर्बाद करने की क्या जरूरत? सीधे अपने चाहतों को ही काम दे दो।

वर्ष 2022-23 में तत्कालीन स्टोर प्रभारी द्वारा L1 फर्म को छोड़कर सूची में सबसे लास्ट व आठवें नंबर की मेडिकल एजेंसी को मनमाने तौर पर एक के बाद एक थोक में सप्लाई आर्डर दे दिया गया। यह कार्य पूर्ण रूप से भंडार क्रय नियम के विरुद्ध था। संभवत: पूरे प्रदेश में यह अपने तरीके का पहला मामला होगा जिसमें एल-1 के बाद एल-2 और उसके बाद एल-3 फर्म को सप्लाई आदेश ना देते हुए सीधे एल-8 एजेंसी से लाखों रुपए कीमत की मेडिसिन खरीद ली गई हो।

पहले नहीं दी जानकारी, शिकायत हुई तो थमा दिए दो पन्ने

चलो मान लिया जाए तुलनात्मक पत्रक में मौजूद एल-1 से एल-7 तक सभी एजेंसियां दवा सप्लाई करने में समर्थ थी। इसलिए एल-8 श्रेणी के एजेंसी को काम दे दिया गया। लेकिन यह कार्रवाई भी नियमों के तहत ही होती है।

भंडार क्रय नियम के अनुसार असमर्थता जाहिर करने वाले फर्म से पहले नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) लिया जाता है, फिर दूसरे फर्म से खरीदी की जाती है। लेकिन यहां तो पंक्ति में पहले पायदान पर मौजूद एजेंसियों से NOC लिया ही नहीं गया। इस संबंध में जब हमने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी तो पहले कुछ नहीं होने का हवाला दिया गया।

Health reporter@राजनांदगांव: ऑब्जेक्शन के भय से सूचना दिए बगैर बार-बार एक ही फर्म को दिया क्रय आदेश, 07 को छोड़कर सबसे अधिक दर वाली एजेंसी को किया फ़ाइनल…

फिर शिकायत करते ही दो पन्नों में कच्चा NOC दिया गया। यह NOC एल-1 फर्म सुरेश मेडिकल स्टोर ग्वालियर मध्यप्रदेश की ओर से सामान्य लेटर पैड में हाथ से लिखे गए है, जिसमें न रेफरेंस नंबर है और ना ही संबंधित मेडिसिन का जिक्र। यह बिलकुल कच्चा रसीद जैसा ही है। इसे शासकीय कार्यों में मान्यता कैसे दे दी गई? यह भी अपने आप में गंभीर प्रश्न है। दिलचस्प बात यह है कि सुरेश मेडिकल स्टोर्स की दो एनओसी क्रमशः 6 नवंबर 2021 और 14 दिसंबर 2022 दिनांक पर दी गई है।

Health reporter@राजनांदगांव: विधानसभा में भी उठा दवा और मेडिकल सामाग्री खरीदी में अनियमितता का मामला, साक्ष्य दिखाकर की गई जांच की मांग, इधर प्रशासन अब भी खामोश…

इसके बाद भी 13 दिसंबर 2021 और 20 दिसंबर 2022 को सुरेश मेडिकल को फिर से वर्क आर्डर जारी कर दिया गया।

Health reporter@राजनांदगांव: सीएमएचओ ऑफिस में गड़बड़झाला; आईडी पासवर्ड घूमने का बहाना, हटाए जाने के डेढ़ महीने बाद भी हैंडओवर नहीं किया स्टोर कीपर का चार्ज, पुराने इंचार्ज से ही खरीदवा रहे मेडिसिन…

इस तरह के टाइम डिफरेंस और मिस मैनेजमेंट को जानकर आप खुद ही समझ सकते हैं कि मामले में किस तरह कूटनीति की गई है। अब इसी कच्चे नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट के जरिए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कर्मचारी अपना साख बचाने में लगे हुए हैं।

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