एक्स रिपोर्टर न्यूज़ । राजनांदगांव
अब नहीं तो कब…आखिर जीवनदायिनी शिवनाथ नदी को बचाएगा कौन…? सवाल बड़ा है और गंभीर भी। अवैध खनन जैसे कार्यों को संरक्षण देने वाले अफसर जनसरोकार से जुड़े इस मुद्दे पर नियमों का हवाला दे रहे हैं। अरे भई…जब बहते पानी के बीच नदी पर पुल बांधा जा सकता है। समुद्र में ब्रिज बनाया जा सकता है तो फिर मोहारा शिवनाथ नदी के गहरीकरण को लेकर को लेकर टालमटोल क्यों? यहां पर वेल क्वालिफाइड अधिकारियों की इंजीनियरिंग कहां फेल हो जा रही है। प्राथमिकता गहरीकरण है ना कि रेत की। रेत खनन करना नहीं बल्कि हमारा लक्ष्य गहरीकरण की ओर केंद्रित होना चाहिए। फिर जनहित से जुड़े इस मामले में नियमों का पेंच कहां से आएगा।
जब से शिवनाथ नदी गहरीकरण को लेकर बात छिड़ी है तब से प्रत्येक जिम्मेदार अधिकारी अपनी ओर से अलग-अलग तर्क देने में लगा हुआ है। कोई कहता है गहरीकरण से नदी में बचा हुआ पानी फैल जाएगा। कोई अफसर कहता है कि जल भराव के बीच गहरीकरण करना असंभव है। ऐसे अधिकारियों को यहां पर बताना लाजिमी है कि बीते वर्ष जिला मुख्यालय से लगे ग्राम बांकल के पास लबालब जल भराव के बीच शिवनाथ नदी से बड़े-बड़े सक्शन मोटर से अंधाधुन रेत का खनन किया गया था। यह हैरतअंगेज तकनीक जिले में पहली बार दिखी थी। संस्कारधानी जल संकट से जूझ रही है। ऐसे में शिवनाथ नदी का गहरीकरण करना नितांत आवश्यक है। शुरुआत में अधिकारियों ने इस मसले पर जोर-शोर से चर्चा की, लेकिन सही समय पर इसे गंभीरता से लेने के बजाय अधिकारी एक दूसरे पर जिम्मेदारी मढ़ते रहे और राजनांदगांव जिला जल अभावग्रस्त घोषित हो गया। भंवरमरा गांव से लेकर मोहारा के नए एनीकट तक हजारों टन रेत ने वाटर स्टोरेज क्षमता को लगभग आधा कर दिया है। योजना बनाकर सही तरीके से काम किया जाए तो जल भराव के बीच भी गहरीकरण किया जा सकता है। ध्यान रहें ग्रीष्म ऋतु में ही गहरीकरण संभव है इसके बाद मानसून आते ही काम करना कठिन हो जाएगा।
