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प्रशिक्षक ने कहा गाजरघास अमेरिका से गेहॅू के साथ मिलकर आया था, जो बन गया राष्ट्रीय स्तर पर समस्या 

 गाजरघास जागरूकता के लिए 16 अगस्त से 21 अगस्त तक प्रशिक्षण आयोजित

फ़ोटो 06 प्रशिक्षण में जानकारी देते विशेषज्ञ

बेमेतरा 20 अगस्त 2021- कृषि विज्ञान केन्द्र ढोलिया बेमेतरा में गाजरघास जागरूकता सप्ताह (16 से 21 अगस्त) अंतर्गत कृषक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। गाजरघास की बढ़ती समस्या को देखते हुये गत 15 वर्षों से भारतीय कृषि अनुसंधान केन्द्र के खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से यह जागरूकता सप्ताह मनाया जा रहा है। गाजरघास के प्रबंधन की जागरूकता हेतु कृषि विज्ञान केन्द्र ढोलिया के द्वारा प्रतिदिन जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के खरपतवार विशेषज्ञ डाॅ. श्रीकांत चितले तथा डाॅ. नीतिश तिवारी की गरिमामय उपस्थिति रही । प्रषिक्षण का आयोजन कृषि विज्ञान केन्द्र, बेमेतरा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, डाॅ. रंजीत सिंह राजपूत के मार्गदर्शन में आयोजित किया गया । इस प्रशिक्षण के दौरान डाॅ. चितले ने कृषकों को गाजरघास के नुकसान के बारे में विस्तृत जानकारी दी तथा बताया किया सन् 1955 में गाजरघास अमेरिका से गेहॅू के साथ मिलकर आया था, जो आज राष्ट्रीय स्तर पर समस्या बन गया है। उन्होनें गाजरघास को पुष्प अवस्था के पहले उखाड़ने की सलाह दी क्योंकि एक पौधा 25000 बीज उत्पन्न करने की क्षमता रखता है।

 

डाॅ. तिवारी के द्वारा गाजरघास के प्रबंधन के साथ-साथ धान, चना, अरहर के खरपतवार प्रबंधन की विस्तृत जानकारी दी। उन्होने बताया कि खरपतवारनाशी हमेशा खरपतवार की प्रारंभिक अवस्था में डालना चाहिये अन्यथा उसका सही परिणाम प्राप्त नहीं होता। साथ ही बोवाई पूर्व एवं बोवाई पश्चात् उपयोग किये जाने वाले विभिन्न खरपतवारनाशी की भी जानकारी दी। विशेषज्ञों द्वारा खरपतवारनाशी की उचित मात्रा में तथा सही समय पर उपयोग की सलाह दी ।
डाॅ. राजपूत के द्वारा बेमेतरा के कृषकों को गाजरघास के प्रबंधन एवं अन्य कृषि संबंधित जानकारी हेतु कृषि विज्ञान केन्द्र से लगातार संपर्क में रहने का आहवाहन किया । इस कार्यक्रम में डाॅ. एकता ताम्रकार, श्री तोषण ठाकुर, डाॅ. प्रज्ञा पाण्डेय, डाॅ. हेमन्त साहू एवं कृषि

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