राजनांदगांव। वक्तृत्व कला विषय पर शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित अंतर्विभागीय व्याख्यान में मुख्यवक्ता के रूप में डॉ. शंकरमुनि राय ने कहा कि संभाषण कौशल औपचारिक और अनौपचारिक भेद से दो प्रकार के होते हैं। मंच इत्यादि स्थान पर बोलना औपचारिक होता है। बोलने ने शारीरिक भाषा का भी महत्वपूर्ण स्थान है। विद्यार्थी को संभाषण कौशल में प्रवीण होना चाहिए,इससे उसका व्यक्तित्व निखरता है। बोलना एक कला है संस्था के प्राचार्य डॉ. के. एल. टांडेकर ने कहा कि वक्तृत्व कला पर आयोजित व्याख्यान का यह विषय उत्कृष्ट है। किसी विद्यार्थी या व्यक्ति के लिए जीवन में कब कहां,क्या,बोलना है, इसका बहुत महत्व है। एक कुशल वक्ता होने के बहुत लाभ होते हैं, वह अपने वक्तृत्व कला से सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित कर अभीष्ट कार्य सिद्ध कर सकता है।
कार्यक्रम का प्रारंभ सरस्वती वंदना से किया गया। संचालन विभागाध्यक्ष डॉ. दिव्या देशपांडे ने किया। इस अवसर पर सहायक प्राध्यापक डॉ. ललित प्रधान, डॉ. महेंद्र नगपुरे एवं बड़ी संख्या में छात्र छात्राएं उपस्थित हुए। आभार ज्ञापन के साथ व्याख्यान का समापन हुआ।

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