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अंग्रेजी विभाग द्वारा राष्ट्रीय कार्यशाला के चौथा दिन, प्राय: सिद्धांतों की भाषा अत्यधिक जटिल व क्लिष्ट होती हैं : डॉ. सविता सिंह

राजनांदगांव। शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय प्राचार्य डॉ. के. एल. टांडेकर के निर्देशन व अंग्रेजी विभाग विभागाध्यक्ष डॉ. अनीता शाह के मार्गदर्शन में पाँच दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के आज चौथे दिवस पर डॉ. सविता सिंह एवं डॉ. सनेसर द्वारा व्याख्यान संपन्न हुआ।

प्रथम सत्र पर डॉ. सविता सिंह ने “साहित्यिक शोध हेतु साहित्यिक सिद्धांत” विषय के बारे में जानकारी दी। किसी भी साहित्यिक कृति का उन पर शोध अध्ययन हेतु सबसे आवश्यक माध्यम साहित्यिक सिद्धांत होते हैं। सिद्धांत ही वह उपकरण है जिसकी सहायता से शोध संभव है। प्राय: सिद्धांतों की भाषा अत्यधिक जटिल व क्लिष्ट होती हैं। डॉ. सिंह ने कहा कि शोध अनुभव के आधार पर इन सभी कठिन सिद्धांतों को बिलकुल सरल तरीके से शोधार्थियों को समझाया, साहित्यिक सिद्धांत के प्रमुख क्षेत्र, विचारकों तथा उनके प्रयोग का सविस्तार विश्लेषण किया गया।

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साहित्यिक सिद्धांत साहित्य के लक्ष्यों की एक दार्शनिक चर्चा है जिसका उपयोग साहित्य के विश्लेषण व व्याख्या में किया जाता है। साहित्यिक आलोचना साहित्य का अध्ययन मूल्योकण व्याख्यान है। साहित्यिक सिद्धांतों की शुरुआत अरस्तू की किताब “Poetics” से मानी जाती के जो कि आज भी प्रासंगिक है। सर फिलिप सिडनी की किताब “Apology for Poetry” सैम्यूल जोनसन की कृति “Life of Poets” वर्डस्वर्थ की अ प्रीफेस टू लिरिकल बैलेड्स, कोलरिज की बायोग्राफिया लिटररिया, शैली की डिफेन्स ऑफ पोएट्री आदि में समाहित साहित्य के सिद्धांतो को वर्तमान परिदृश्य में समकालीन साहित्य की आलोचना में किस प्रकार प्रयोग किया जाता है सविस्तार जानकारी प्राप्त हुई। विश्व प्रख्यात दार्शनिक फ्रायड तथा लांका के मनोवैज्ञानिक सिद्धातों का साहित्य शोध किस प्रकार प्रयोग किया जा सकता है। इस पर विशेष प्रकाश डाला गया।

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द्वितीय सत्र में छिंदवाड़ा से डॉ. सनेसर ने कहा कि शोधार्थी को एक नाविक की संज्ञा दी तथा शोध को एक अज्ञात समुद्र में यात्रा बताया। शोध निर्देशक को एक पथवार बताया जो कि शोधार्थी की नौका को आगे बढ़ाते है तथा शह प्रशस्त करते हैं। डॉ. सनेसर के व्याख्यान का विषय था “जीवनी पर शोध अध्ययन जीवनियों के अध्ययन सें शोधार्थी को एक पूरे युग, एक दर्शन, एक जीवन को करीब से जानने का अवसर प्राप्त होता है। जीवनी पर शोध पूर्ण करने पर एक शोधार्थी स्वयं जीवनी लिखन के योग्य हो जाता है। दोनों ही व्याख्यानों के पश्चात प्रतिभागियों के प्रश्नों व शंकाओं का संतोषप्रद समाधान किया गया।

By Amitesh Sonkar

Sub editor

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