संस्कृत वाङ्मय की बहुत विशाल परंपरा है : डॉ. गौतम
- संस्कृत विभाग में अतिथि व्याख्यान आयोजित
राजनांदगांव। शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. के. एल. टांडेकर के निर्देशन संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. दिव्या देशपांडे के मार्गदर्शन में “संस्कृत शास्त्रों की परंपरा” विषय पर अतिथि व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता सागर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के सहा. प्राध्यापक डॉ. नौनिहाल गौतम थे। विभागाध्यक्ष डॉ. देशपांडे ने स्वागत कर विषय संबंधी जानकारी दी।
मुख्य वाक्त डॉ. गौतम ने कहा कि संस्कृत वाङ्मय की बहुत विशाल परंपरा है, जिसमे वैदिक साहित्य से लेकर लौकिक साहित्य तक समृद्ध भंडार है। शास्त्र दो प्रकार के हैं, पौरुषेय तथा अपौरुषेय। वेदों को अपौरुषेय माना गया है, जिसमे चारों वेदों का समावेश है। इसके अतिरिक्त ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद भी वैदिक साहित्य के अंतर्गत आते हैं, जो वेदों के व्याख्या भाग हैं। वेदार्थ को समझने के लिए शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष इन छह वेदांगों की रचना की गई है। पौरुषेय शास्त्रों में पुराण, आन्वीक्षिकी, मीमांसा, स्मृति ग्रंथों का नाम आता है।
इन चौदह प्रकार के विद्यास्थानों के अलावा आदिकाव्य रामायण, महाभारत, नाट्यशास्त्र, काव्यशास्त्र, अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र, पाकशास्त्र, सङ्गीतशास्त्र, वास्तुशास्त्र, कामशास्त्र, सामुद्रिकशास्त्र तथा आधुनिक लौकिक काव्य एवं शास्त्रों का विस्तृत प्रतिपादन किया।
वही कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. ललित प्रधान ने दिया। कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष डॉ. दिव्या देशपांडे, डॉ. ललित प्रधान, डॉ.महेंद्र नगपुरे सहित बहुत से छात्र – छात्राएं उपस्थित थे।

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