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मोहारा नदी में गोवर के तैरते दीप मानो मोहारा नदी में उतरी चांदनी… पहली बार दिखा ऐसा दृष्य
  • सेल्फी जोन बना मोहारा नदी का ऐतिहासिक मंदिर का घाट
  • गोवर के तैरते दीप देख लोगों नें कहा अद्भुत प्रयोग
     नदी भी बचेगी गाय भी बचेगाः आर्य प्रमोद 

राजनांदगांव।  साहित्य नगरी राजनांदगांव के प्रसिद्ध मोहारा नदी घाट पर तीन दिवसीय भव्य मेले का आयोजन किया गया। हर बार की तरह कार्तिक पूर्णिमा के मेले में झूले, मिठाईयां, वस्त्र आदि के अनेको स्टॉल लगाये गये तथा प्रतिदिन सायंकाल भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इस बार मेले के ऐतिहासक मंदिर में कुछ अनोखा प्रयोग हुआ जो लोगों के लिए विस्मय का विशय तो था हि साथ ही उनको उनकी नैतिक जिम्मेदारी के लिए भी प्रेरित कर रहा था। हनुमान मंदिर घाट पर संध्या में गोवर के दीपक को जब नदी में प्रवाहित किया गया तब वहां उपस्थित लोग बड़े आष्चर्य से देखने लगे कि, दीपक कैसे तैर गया! क्योंकि उस दीपक के नीचे ना तो कोई प्रदूशणकारी थर्माकोल डिब्बे, प्लास्टिक के पत्तल थे और न ही उसका कोई आधार था जिससे वह पानी में तैर सकेे ।  गोवर के दीपक का निर्माण इस तरह किया गया था कि दीपक का पूरा हिस्सा नदी के जल में था। षांत जल में केवल दीपक की लौ ही दिख रही थी। सैंकड़ों दीपक नदी में प्रवाहित किए गए दृष्य ऐसा लग रहा था मानो आसमान की चांदनी धरती पर उतर आयी हो। एक ओर जहां पर्यावरण प्रेमियों नें इस पहल की प्रसंषा करते नहीं थक रहे थें वहीं ऐतिहासिक हनुमान मंदिर के पुजारी मोहन तिवारी नें कहा कि मोहारा नदी का घाट आज हरिद्वार और मथुरा के घाट जैसा प्रतीत हो रहा है। नदी घाट के दीपदान के दृष्य पर हजारो लोगों नें अपनी सेल्फी ली। एक श्रेश्ठ कर्तव्य, नदी तालाबों के सम्मान में दीपदान की सनातन परम्परा का लोगों नें भरपूर आनंद उठाया।
माँ पंचगव्य अनुसंधान केन्द्र,लीटिया राजनांदगांव के द्वारा गोवर के दीपक तैयार किए गये थे। मोहारा नदी घाट पर तीन दिन में 4000 दीपदान किए गये।
अनुसंधान केन्द्र प्रभारी आर्य प्रमोद ने बताया कि, नदी तालाब, कुंवे आदि के जल को स्वच्छ रखने यानि जल षोधन के लिए देषी गोवंष के गोवर का उपयोग एक प्राचीन और वैज्ञानिक परम्परा है। भारतीय संस्कृति में नदी तालाबों में जो दीपदान की परम्परा है वह इस बात की गवाह है। पर आज आधुनिक संसाधनों के चलते अपने पारम्परिक संसाधनों की अवहेलना की जाती है। आधुनकि संसाधन आम लोगों की पहुंच में नहीं होता और वह प्रकृति के अनुचित होता है, अतः हमें अपने पारम्परिक संसाधनों को जानने व सहेजने की आवष्यकता है। इस प्रकार जीवनदायी नदी तालाबों में गोवर के दीपदान की परंपरा को पुनःजीवित कर सके  तो इससे नदी भी बचेगी और गोवंष भी बचेगा।
अनुसंधान केन्द्र द्वारा गोवंष की महत्ता व वैज्ञानिकता को लंबे समय से प्रचारित कर रहा है। इनका मानना है कि, देषी गोवंष आधारित खेती, स्वदेषी चिकित्सा व अन्य प्राकृतिक वस्तुवों का उपयोग हो जो सभी के लिए हितकर है। सभी जगह मिलने में भी आसान है, साथ ही यह प्रकृति की व्यवस्थाओं के अनुकूल भी है। मोहारा मेला स्थित तीन दिवसीय संध्याकालीन दीपदान में माँ पंचगव्य अनुसंधान केन्द्र,लीटिया राजनांदगांव से डिलेष्वर साहू,  मनोज षुक्ला, हार्दिक कोटक,प्रवीण तिवारी, पुरशोत्तम देवांगन, आनंद श्रीवास्तव, घंसूराम साहू आदि द्वारां दीपदान स्थ्।ल सेवाएं दी गई।

By Amitesh Sonkar

Sub editor

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