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धान की फसल में ब्लास्ट रोग के लक्षण दिखने पर प्रोपेकोनाजोल और ट्रायसाइक्लाजोल का पानी में घोलकर करें छिड़काव

रोग के लक्षण दिखाई देने पर प्रोपेकोनाजोल 20 मि.ली. मात्रा को 15 से 20 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करें।

धान की फसल मे बीमारियों के उपचार व रोकथाम के बारे में किसानो को सलाह

फोटो 04 : इस तरह धान की फसल में दिखाई देता है ब्लास्ट रोग

बेमेतरा 21 अक्टूबर 2021-जिले में ज्यादातर किसान धान की फसल लगाते हैं। वर्तमान समय में धान में बालियां आने लगी हैं। पौधे की पत्तियां, तना, गाठ व बालियों पर अनेक कीट-पतंगो के प्रकोप व बीमारियों  के लक्षण दिखाई देते है।

किसानों को सलाह दी गई है कि वे नियमित रूप से खेतों का भ्रमण कर संभावित कीट पतंगों के प्रकोप की निगरानी करें। लक्षण दिखने पर कृषि वैज्ञानिकों अथवा कृषि विभाग के परामर्श से तत्काल उपचार कराएं। कृषि विभाग द्वारा झुलसा/ब्लास्ट रोग, पर्णच्छद अंगमारी शीथ ब्लाइट रोग और धान का तना छेदक बीमारियों के लक्षण व उपाय के बारे में जानकारी दी गई है। झुलसा/ब्लास्ट रोग-असिंचित धान में यह रोग ज्यादा पाया जाता है। इसमें पौधे की पत्तियों, तना, गांठ व बालियों पर इसके लक्षण दिखाई देते है। पत्तियो पर गहरे भूरे रंग की आंख की आकृति बन जाती है। गांठ पूर्णतः काला व तना सिकुड़ जाता है।

उपचार- ट्रायसाइक्लाजोल 75 प्रतिशत डब्ल्यू पी का 120-160 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करे। प्रोपिकोनालजोल 12.5 प्रतिशत और ट्रायसाइक्लाजोल 40 प्रतिशत एस सी  का 400 एम.एल/एकड़ की दर से छिड़काव करे। पर्णच्छद अंगमारी शीथ ब्लाइट रोग-इस रोग के प्रमुख लक्षण पर्णच्छ्दों व पत्तियों पर दिखाई देते हैं। इसमें पर्णच्छद पर पत्ती की सतह के ऊपर 2-3 से.मी. लम्बे हरे-भूरे या पुआल के रंग के क्षतस्थल बन जाते हैं।

खेतों में जल निकासी की व्यवस्था अच्छी होना चाहिए 

प्रोपेकोनाजोल 20 मि.ली. मात्रा को 15 से 20 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करें

फसल कटने के बाद अवशेषों को जला दें। खेतों में जल निकासी की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए तथा जलभराव नहीं होना चाहिए। रोग के लक्षण दिखाई देने पर प्रोपेकोनाजोल 20 मि.ली. मात्रा को 15 से 20 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करें।
धान का तना छेदक-इस कीट की सूड़ी अवस्था ही क्षतिकर होती है। सबसे पहले अंडे से निकलने के बाद सूड़ियां मध्य  कलिकाओं की पत्तिया में छेदकर अन्दर घुस जाती हैं और अन्दर ही अन्दर तने को खाती हुई गांठ तक चली जाती हैं। पौधों की बढ़वार की अवस्था में प्रकोप होने पर बालियां नही ंनिकलती हैं। बाली वाली अवस्था में प्रकोप होने पर बालियां सूखकर सफ़ेद हो जाती हैं और दाने नहीं बनते हैं।

उपचार–     क्लोरो 50 प्रतिशत, साइपर 5 प्रतिशत, 400 एम.एल./एकड़, फलूबेन्डामाइड 20 प्रतिशत डब्ल्यू जी का 50-100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करे। फिप्रोनिल 0.3 प्रतिशत जी आर का 7-10 किलोग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करे। क्लोरानट्रेनिलीप्रोल 9.3 प्रतिशत और लेम्डासाइहेलोथ्रिन 4.6 प्रतिशत जेड सी का 80-100 एम.एल/एकड़ की दर से छिड़काव करे।

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