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राजनांदगांव। अविभाजित जिला राजनांदगांव में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष रहती है, यह गरीब बच्चों के लिए सौभाग्य की बात है, लेकिन उसका लाभ जब गरीब बच्चों को नहीं मिल पाए तो यह दुर्भाग्य की बात है।
प्रायवेट स्कूलों की मनमानी और जिला शिक्षा अधिकारी की उदासीनता के चलते सैकड़ों गरीब बच्चे इस वर्ष निःशुल्क शिक्षा पाने से वंचित हो जाएंगे, क्योंकि लगभग 86 प्रायवेट स्कूलों ने इस वर्ष गरीब बच्चों को आरटीई कानून के अंतर्गत प्रवेश देने से इंकार कर दिया है, वे अपने स्कूलों में गरीब बच्चों को प्रवेश देने की सीट की संख्या शून्य बताया है।
छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल ने समय रहते इसकी लिखित जानकारी बाल आयोग की अध्यक्ष को दे दिया था, लेकिन उनके द्वारा भी इस मामले में गंभीरता नहीं दिखाया, जिसके चलते गरीब बच्चे इन 86 प्रायवेट स्कूलों में ऑनलाईन आवेदन नहीं कर पा रहे है, अब उन्हें मोटी फीस देकर उन्हीं स्कूलों या अन्य स्कूलों में एडमिशन कराना पड़ सकता है।
हैरत की बात यह है कि पूरा जिला प्रशासन इस बात से अनजान नहीं है, लेकिन प्रायवेट स्कूलों के खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्मत कोई नहीं दिखा पा रहा है। अब पालकों को ही रोड़ में उतर कर अपने बच्चों के अधिकार के लिए लड़ना पड़ेगा, तभी उनके बच्चों को निःशुल्क शिक्षा मिल पाएंगी।
पैरेंट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल का कहना है कि जब तक अमीर- गरीब के बच्चे एक स्कूल में नहीं पढ़ेंगे, तब तक इस कानून का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि यह कानून सबके लिए है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी अपने पदीय कर्तव्यों को प्रति उदासीनता बरते है और अपने निजी स्वार्थ को पूरा करने में लगे रहते है, यही कारण है कि इस कानून का समुचित लाभ बच्चों को नहीं मिल पा रहा है।

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