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*कवर्धा की वर्षो पुरानी परंपरा: महाअष्टमी पर आज मध्यरात्रि में तीन देवी मंदिरो से निकलेगी खप्पर*

कवर्धा XReporter News। नवरात्र महोत्सव के पावन अवसर पर कवर्धा धर्मनगरी आज रात एक ऐतिहासिक और अलौकिक दृश्य की साक्षी बनेगी। माँ चंडी मंदिर, परमेश्वरी मंदिर और दंतेश्वरी मंदिर इन तीनों शक्ति पीठों से माता रानी का खप्पर स्वरूप आज दिनांक 30 सितम्बर 2025 की रात 12 बजे निकलेगा।
पूरे देश में कवर्धा ही एक मात्र नगर है जहाँ खप्पर निकालने की परंपरा दशकों से निरंतर चलती आ रही है। यह परंपरा आज भी उसी श्रद्धा और आस्था के साथ निभाई जाती है, जैसे सदियों पूर्व शुरू हुई थी।

**प्रशासन और मंदिर समिति की पूरी तैयारी*
कवर्धा पुलिस बल और मंदिर समिति ने आपसी तालमेल से संपूर्ण व्यवस्थाएँ की हैं।
सुरक्षा के लिए पुलिस बल की विशेष तैनाती रहेगी।
जगह-जगह सीसीटीवी कैमरों की निगरानी होगी।
श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यातायात व्यवस्था, पार्किंग, प्रकाश और पेयजल की पूरी तैयारी की गई है।
स्वयंसेवक लगातार भक्तों का मार्गदर्शन करेंगे।
हजारों-लाखों श्रद्धालुओं के आगमन की संभावना को देखते हुए प्रशासन ने यह सुनिश्चित किया है कि किसी को भी दर्शन में असुविधा न हो।

*कवर्धा धर्मनगरी का गौरवशाली इतिहास*

कवर्धा को छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे भारत में धर्मनगरी के रूप में जाना जाता है। यहाँ के प्राचीन मंदिर और लोक परंपराएँ श्रद्धा का प्रतीक हैं।

चंडी मंदिर शक्ति की आराधना का केंद्र, जहाँ नवरात्र में विशेष पूजा होती है।

परमेश्वरी मंदिर माँ परमेश्वरी का पवित्र धाम, भक्तों की आस्था का आधार।

दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा की देवी माँ दंतेश्वरी की प्रतीक स्वरूप यह मंदिर शक्ति परंपरा को जीवित रखे हुए है।

इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि कवर्धा रियासत काल से ही शक्ति पूजा का मुख्य केंद्र रहा है।

*श्रद्धालुओं में अपार उत्साह*

देश के कोने-कोने से श्रद्धालु कवर्धा पहुँच रहे हैं। नगर के मंदिरों को आकर्षक ढंग से सजाया गया है। दीपमालाओं की झिलमिलाहट, भजन-कीर्तन की गूँज और माता रानी के जयकारों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा है।
माँ का यह खप्पर स्वरूप दर्शन का अद्भुत अवसर है, जिसकी परंपरा केवल कवर्धा में जीवित है। यही कारण है कि इसे देखने और आशीर्वाद पाने के लिए हजारों-लाखों भक्त उमड़ते हैं।
कवर्धा का यह खप्पर न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक है। यह परंपरा आस्था, शक्ति और मातृत्व की उस अनूठी झलक को प्रस्तुत करती है, जिसे देखने का सौभाग्य सिर्फ कवर्धा की धरती पर ही संभव है।

By Rupesh Mahobiya

Bureau Chief kawardha

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