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नेवारीगुढ़ा बना आस्था का अनोखा धाम: 51 शक्तिपीठ और मां नवदुर्गा के दर्शन को रोज उमड़ रही अपार भीड़

कवर्धा XReporter News। नवरात्र पर्व पर कवर्धा जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित छोटा सा गांव नेवारीगुढ़ा इन दिनों प्रदेशभर में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। यहां आयोजित भव्य धार्मिक आयोजन ने आस्था, भक्ति और सामाजिक एकता का ऐसा संगम रचा है, जिसे देखने हजारों श्रद्धालु रोजाना उमड़ रहे हैं। गांव का विशाल पंडाल रोशनी और श्रद्धा से आलोकित है, जहां एक ही स्थल पर मां नवदुर्गा के नौ स्वरूपों के साथ देशभर के 51 शक्तिपीठों का जीवंत प्रतीकात्मक स्वरूप स्थापित किया गया है।

जैसे ही श्रद्धालु पंडाल में प्रवेश करते हैं, उनके सामने भक्ति का ऐसा दृश्य उभरता है जो मन मोह लेता है। मां नवदुर्गा के अद्भुत स्वरूप और चारों दिशाओं में सजे 51 शक्तिपीठों की प्रतिमाएं देखकर भक्त भाव-विभोर हो जाते हैं। हजारों की भीड़ हाथ जोड़कर आराधना में लीन हो जाती है। यह दृश्य श्रद्धालुओं के लिए किसी दिव्य यात्रा से कम नहीं लगता।

महीनों की तैयारी, तीन गांवों का सामूहिक प्रयास

नेवारीगुढ़ा और आसपास के दो अन्य गांवों ने मिलकर इस आयोजन को साकार किया है। ग्रामीणों का कहना है कि महीनों पहले से इसकी तैयारी शुरू कर दी गई थी। गांव की महिलाएं, बच्चे और युवा—सबने मिलकर दिन-रात मेहनत की। पूजा-पंडाल का हर कोना इस सामूहिक परिश्रम की गवाही देता है। 51 शक्तिपीठों की प्रतिमाओं को इस तरह सजाया गया है कि वे सचमुच जीवंत प्रतीत होती हैं। मां कामाख्या से लेकर मां वैष्णो देवी, मां पीठेश्वरी से लेकर मां तारापीठ तक, सभी स्वरूप एक ही छत के नीचे दर्शनीय हैं।

श्रद्धालुओं की अपार भीड़ और सेवाधारियों की व्यवस्था

रोजाना हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। सप्ताहांत पर तो भीड़ इतनी बढ़ जाती है कि गांव मेले जैसा नजर आने लगता है। श्रद्धालुओं के आने-जाने, पार्किंग, प्रसाद वितरण और बैठने की व्यवस्था सब कुछ गांव के सेवाधारियों ने खुद संभाल रखा है। युवाओं ने सुरक्षा और पार्किंग की जिम्मेदारी ली है, वहीं महिलाएं भजन-कीर्तन और प्रसाद वितरण में जुटी हैं। गांव की गलियां साफ-सुथरी हैं और हर ओर भक्ति का वातावरण महसूस होता है। ग्रामीणों का कहना है कि इतना बड़ा आयोजन पहली बार हुआ है, जिसमें पूरा गांव एक परिवार की तरह जुड़ा है।

रोशनी और भक्ति से जगमगाता पंडाल

दिन ढलते ही पंडाल रोशनी से नहाकर स्वर्गिक रूप ले लेता है। भजन-संध्या और मां की आरती से पूरा वातावरण गूंज उठता है। श्रद्धालु देर रात तक माता की भक्ति में लीन रहते हैं। यहां आने वाले हर व्यक्ति का अनुभव यही होता है कि यह आयोजन केवल पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि आस्था और समर्पण का जीवंत प्रतीक है।

प्रदेशभर से उमड़ रही भीड़

नेवारीगुढ़ा का नाम अब केवल आसपास के गांवों में ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में गूंज रहा है। सोशल मीडिया और श्रद्धालुओं की चर्चा से इसकी ख्याति रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, बेमेतरा और अन्य जिलों तक फैल चुकी है। ट्रैक्टर-ट्रॉलियों, बसों और निजी वाहनों में सवार होकर लोग यहां पहुंच रहे हैं। पंडाल के बाहर घंटों खड़े रहकर भी श्रद्धालु दर्शन करने के लिए कतार में लगे रहते हैं।

51 शक्तिपीठ और नवदुर्गा का महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान शिव सती के देहवियोग के शोक में विचरण कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनके दुख को शांत करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के अंगों को विभाजित किया। जहां-जहां अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ बने। देशभर के 51 शक्तिपीठ शक्ति साधना के पवित्र केंद्र माने जाते हैं। इन्हीं शक्तिपीठों को प्रतीकात्मक रूप से नेवारीगुढ़ा में प्रस्तुत किया गया है।

मां नवदुर्गा के नौ स्वरूप— शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री—की पूजा से भक्तों को अलग-अलग सिद्धियां और शक्तियां प्राप्त होती हैं। यही कारण है कि नवरात्र में मां की आराधना का विशेष महत्व है।

आस्था और सामाजिक समरसता का अद्भुत संगम

नेवारीगुढ़ा का आयोजन केवल धार्मिक महत्व का नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का भी उदाहरण है। गांव के लोग बताते हैं कि उन्होंने यह आयोजन केवल पूजा के लिए नहीं, बल्कि नई पीढ़ी को भारत की शक्ति परंपरा और सामाजिक समरसता से जोड़ने के लिए किया है। यहां पहुंचने वाला हर श्रद्धालु यही अनुभव करता है कि यह आयोजन आस्था, सेवा और एकता की मिसाल है।

📌 51 शक्तिपीठों का महत्व

सती के अंग जहां-जहां गिरे, वहां बने 51 शक्तिपीठ।

मां कामाख्या (असम), मां वैष्णो देवी (जम्मू), मां तारापीठ (बंगाल) और मां पीठेश्वरी (गुजरात) प्रमुख।

प्रत्येक शक्तिपीठ देवी के अलग स्वरूप का केंद्र, आस्था और साधना का अद्वितीय स्थल।

📌 नवदुर्गा के नौ स्वरूप

शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री

प्रत्येक स्वरूप विशेष शक्ति और सिद्धि का प्रतीक।

By Rupesh Mahobiya

Bureau Chief kawardha

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