✍️ लाला कर्णकान्त श्रीवास्तव
एक्स रिपोर्टर न्यूज़ । राजनांदगांव
11 साल में अफसर बदले, जगह बदली लेकिन मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल प्रबंधन की तानाशाही अब भी बरकरार है। गंभीर बात तो यह है कि अब यह तानाशाही सरकारी सिस्टम पर भारी पड़ने लगी है। सीधे कहे तो केंद्र और राज्य सरकार के नियंत्रण से बाहर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में खुद की गवर्नमेंट काम कर रही है। यही वजह है कि यहां बेधड़क नियम विरुद्ध कार्यों को अंजाम देकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है और कोई टोकने वाला भी नहीं है।
ऐसे ही एक अटैचमेंट मामले ने अफसरों की तानाशाही और भ्रष्ट आचरण की पोल खोल दी है। किस तरह अटैचमेंट, DDO (ड्राइंग एंड डिसबर्सिंग ऑफिसर) पॉवर ट्रांसफर और फिर प्रमोशन देकर JR (जूनियर रेजिडेंट/ जूनियर डॉक्टर) को SR (सीनियर रेजिडेंट/ सीनियर डॉक्टर) बनाकर प्रबंधन की कमान दे दी गई। जबकि DDO पॉवर ट्रांसफर करने का अधिकार वित्त मंत्रालय/सचिव के पास सुरक्षित होता है।
अस्थायी अटैचमेंट मामले में इस तरह का खेल शायद पहली बार सामने आया है। मामला और भी पेचीदा इसलिए हो चुका है क्योंकि यहाँ DHS (Directorate of Health Services) से DME (Directorate of Medical Education) में किसी डॉक्टर का हैरतअंगेज तरीके से ट्रांसफर किया गया है। खेल उस समय हुआ जब शुरुआती दौर में मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल फैकल्टी की कमी से जूझ रहा था। अपनी लाज बचाने और MCI (Medical Council of India) की मार से बचने DHS के डॉक्टर को उधार में लिया गया। आनन फ़ानन में अस्थायी तौर पर जिला अस्पताल और डिस्ट्रिक्ट हेल्थ फैसिलिटी में काम करने वाले कुछ डॉक्टर को मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल भेजा गया। पेंड्री में शिफ्टिंग और कॉन्ट्रैक्ट डॉक्टरों की ज्वाइनिंग के बाद उधार के डॉक्टरों को वापस लौटा दिया गया। लेकिन कुछ डॉक्टर अभी भी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में जमे हुए है। इन डॉक्टरों का वापस नहीं लौटना दो बातों की तरफ इशारा कर रहा है। या तो उन्हें अपने प्रोफेशन और DME से इतना लगाव है कि वे नियम कायदों को ताक पर रख सकते हैं? या फिर धन, शक्ति, संपत्ति का अत्यधिक मोह…? लेकिन डॉक्टरों को ज्ञात होना चाहिए कि उक्त दोनों सूरतों में उनका नाम और साख ही दाव पर लगा है। कार्रवाई होने पर इन्हें नुकसान पहुँचते देर नहीं लगेगी।
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