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✍️ लाला कर्णकान्त श्रीवास्तव

एक्स रिपोर्टर न्यूज़ । राजनांदगांव

अवैध विक्रय पर लगाम लगाने का दावा करने वाली छत्तीसगढ़ सरकार की दुकानों से ही बोरिया भर-भरकर शराब निकल रही है। कोचिया बेधड़क बिना किसी रोक-टोक के दुकानों से शराब लेकर अवैध विक्रय का कारोबार चला रहे हैं। यह तथ्य और भी मजबूत तब हो गया जब पुलिस ने साल 2024 का क्राइम डाटा प्रस्तुत किया। पिछले वर्ष पुलिस ने राजनांदगांव जिले भर में आबकारी के 1409 प्रकरण दर्ज किए। इन केसेस में 1463 आरोपियों के गिरफ्तारी के साथ देशी-अंग्रेजी मिलाकर कुल 5431 लीटर शराब जब्त की गई। अधिकांश मामले छत्तीसगढ़ सरकारी दुकानों से निकले शराब के अवैध विक्रय और परिवहन के पाए गए हैं। सीधे कहे तो यह क्राइम डाटा जिले में शराब की ब्लैक मार्केटिंग की प्रत्यक्ष गवाही दे रही हैं।

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बता दें कि रमन सरकार के समय अवैध विक्रय और कोचिया गिरी पर लगाम लगाने के उद्देश्य से शराब दुकानों का शासकीयकरण किया गया। इस प्लानिंग से दुकानों की संख्या घटकर आधी हो गई। शुरुआत के कुछ वर्षों तक यह योजना कारगर रही पर इसके बाद कुकुरमुत्ते की तरह कोचिया पनप गए और शहर के गली मोहल्ले के साथ गांव-गांव में शराब के अवैध विक्रय का कारोबार शुरू हो गया। जो अब तक अनवरत जारी है। बीच में चुनाव आचार संहिता और सरकारी सख्ती से कारोबार में थोड़ी कमी जरूर आती है लेकिन इस पर पूरी तरह पाबंदी लगाने के लिए चाहे सरकार हो या जनप्रतिनिधि या फिर अधिकारी किसी की मंशा नहीं लग रही है। तभी तो प्रदेश हो या फिर जिला शासकीय शराब दुकानों से थोक में शराब की सप्लाई कोचियों को की जा रही है।

सूचना देने के बाद भी अफसर ने नहीं की कार्रवाई

बीते दिनों शहर के एक शासकीय शराब दुकान से बोरियों में भरकर शराब कोचियों को दी जा रही थी। शराब लेने के लिए बाकायदा 4-5 लड़कों की टीम तैनात थी। एक लड़का मोपेड के पास बोरी रखकर खड़ा था जबकि अन्य चार बारी-बारी से दुकान जाकर 8 से 10 पौव्वा शराब लाने का काम कर रहे थे। एक के बाद एक बोरिया भरती जाती और फिर शराब लाने का काम शुरू हो जाता। जानकारी मिलते ही मीडिया टीम मौके पर पहुंची, आँखों के सामने पूरा दृश्य देखने के बाद मीडिया टीम ने आबकारी विभाग के अधिकारी को सूचना दी। लगा था अधिकारी मामले में तत्काल एक्शन लेकर उचित कार्रवाई करेंगे। अफसोस ऐसा नहीं हुआ। आबकारी विभाग के इस रवैये ने विभागीय कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या टारगेट पूरा करने के लिए जानबूझकर ऐसा किया जा रहा है? या फिर वजह कुछ और ही है…? सवाल कई है पर इसका जवाब कोई देना नहीं चाह रहा है। इससे पहले भी शराब के अवैध विक्रय को लेकर जिला आबकारी विभाग की काफी किरकिरी हो चुकी है। अब देखना यह कि क्या प्रशासन इस मामले को संज्ञान में लेती या फिर ब्लैक मार्केटिंग का खेल ऐसे ही चलता रहेगा?

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