राजनांदगांव – शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव के शहीद वीर नारायण सिंह ऑडिटोरियम में जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत, ऐतिहासिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक योगदान विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अंजना ठाकुर ने अपने उद्बोधन में कहा कि जनजातीय समाज के ऐतिहासिक विरासत में, अद्भुत शौर्य और संघर्ष देखने को मिलता है। आदिवासी अपने स्वाभिमान और जमीन के लिए जीवन पर्यंत संघर्ष किया। आदिवासी समाज अपने अनुष्ठानों और लोकगीतों के माध्यम से हमेशा अपने जड़ों को मजबूत किया है एवं उनके जीवन मूल्यों और परंपराओं से हमें आज भी प्रेरणा मिलती है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. राजेश पांडे, अपर संचालक क्षेत्रीय कार्यालय दुर्ग उच्च शिक्षा विभाग छत्तीसगढ़ शासन ने अपने उद्बोधन में कहा कि छत्तीसगढ़ जनजाति बाहुल्य प्रांत है। भारतीय इतिहास में आदिवासी समाज का गौरव दर्ज नहीं हो पाया है। जनजाति समाज स्वाभिमानी और स्वावलम्बी समाज है, आदिवासी समाज प्रकृति पूजक है। वे भारत के मूल निवासी हैं। भारतीय स्वतंत्रता में जनजातीय समाज का गौरवशाली योगदान रहा है। उन्होंने जनजाति समाज की माता शबरी तिलका मांझी, सिद्ध और कानों, भगवान बिरसा मुंडा जैसे जनजातीय वीरों के शौर्य का पुण्य स्मरण किया।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता डॉ. शैलेन्द्र सिंह ने जनजाति समाज के इतिहास संस्कृति, रहन-सहन, कृषि व्यवसाय, आचार -विचार, रहन- सहन,धार्मिक आस्था और पर्व आदि पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि जनजातीय समाज ईश्वरीय शक्ति पर विश्वास करता हैं। आदिवासियों नें जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए आजीवन संघर्ष किया। श्रोतवक्ता प्रो. हिरेंद्र बहादुर ठाकुर ने छत्तीसगढ़ के विभिन्न जनजातियों का उल्लेख करते हुए परलकोट विद्रोह के नायक वीर गेंद सिंह के शौर्य और संघर्ष पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वह छत्तीसगढ़ की स्वाधीनता आंदोलन के प्रथम वीर शहीद हैं। कार्यक्रम का संचालन डॉ. बी एन जागृत नें एवं आभार प्रदर्शन कार्यक्रम के संयोजक डॉ. मीना प्रसाद ने किया। छात्र-छात्राओं द्वारा आदिवासी लोक नृत्य की प्रस्तुति नें सबका मन मोह लिया। इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के अधिकारी, कर्मचारी सहित बड़ी संख्या में पत्रकारिता, एन.एस.एस, एन.सी.सी. और यूथ रेड क्रॉस के विद्यार्थीगण उपस्थित रहें।

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