IMG-20241026-WA0010
IMG-20241026-WA0010
previous arrow
next arrow

एक्स रिपोर्टर न्यूज़ । राजनांदगांव

शहर के सबसे पॉश इलाके यानी ममता नगर इंडस्ट्रियल एरिया में 99 साल की लीज पर दी गई सरकारी जमीन पर फैक्ट्रियां की जगह मकानों और भवनों का निर्माण कर दिया गया है। अधिकांश आवंटित भूमि को किसी तीसरी पार्टी को किराए में देकर हकदार बिना किसी मेहनत के पैसा छाप रहे हैं। जिन फैक्ट्रियों को भूमि का आवंटन किया गया वह चालू है या बंद यह जानने के लिए भी किसी को फुर्सत नहीं है। भौतिक सत्यापन तो बहुत दूर की बात है। क्योंकि इसकी निगरानी करने वाला जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र वर्षों से कुम्भकर्णी नींद में जो है।

उद्योगों को बढ़ावा देने के शासन के प्रयासों को उद्योग विभाग ही पलीता लगा रहा है। करीब 40 दशक पूर्व जिन 55 उद्योगपतियों को उसने उद्योग लगाने के लिए लीज पर जमीन दी थी। उसमें से कितने उद्योगपति वास्तविक रूप से कम कर रहे हैं इसका पता खुद उद्योग विभाग के अफसरों को ही नहीं है। खबर है कि कुछ लाभार्थी इन भूखंडों पर मकान बनवाकर उनसे किराया उगाह रहे हैं। कुछ ने दूसरी कंपनियों को जगह किराए पर दे रखा है। यह सब उद्योग विभाग की नाक के नीचे हो रहा है फिर भी विभागीय अधिकारी खामोश बैठे हुए हैं।

सिर्फ औद्योगिक कार्य के लिए दी गई है जमीन

उद्योग विभाग द्वारा औद्योगिक क्षेत्र में 99 वर्ष के लिए जमीन का पट्टा किया जाता है। शर्त यह होती है कि जिस काम के लिए जमीन को लिया जा रहा है उद्यमी वही काम करेगा। अगर आवंटी को अपना काम बदलना है तो उसकी सूचना विभाग को देनी होगी, लेकिन यहां ऐसा नही हो रहा है। कोई आवंटी कारखाना चलाने में सक्षम नहीं है तथा फैक्ट्री को किसी दूसरे को देना चाहता है तो इसके लिए लीज डीड होती है। यह पांच वर्ष के लिए ही होती है, कारण यह माना जाता है कि शायद इतने वक्त में मूल आवंटी फिर से कारोबार करने में समर्थ होगा। लेकिन यहां नियमों की अनदेखी कर उद्यमी समझौता कर फैक्ट्रियों को किराए पर चढ़ा दें रहे हैं। विभागीय अफसरों को इसकी जानकारी मिलती भी है तो सेटिंग कर ली जाती है।

गैर कानूनी कार्य होने का है खतरा

बगैर कागजी लिखा-पढ़ी के फैक्ट्रियों को किराए पर लेने वाले गैरकानूनी काम करने से डरते नहीं हैं। वजह इनके नाम न तो जमीन है न ही विभाग के पास रिकॉर्ड। इनके द्वारा मूल आवंटी को भी अच्छी-खासी रकम दी जाती है। मूल आवंटी भी जानते हैं कि अगर कोई मामला फंसेगा तो वह साक्ष्यों के आधार पर बच जाएंगे। ममता नगर इंडस्ट्रियल एरिया में यूं तो जमीन कृषि उपकरण, टाइल्स, ऑटोमोबाइल और सर्विसिंग सेंटर के नाम पर आवंटित की गई है लेकिन असल में उक्त आवंटित भूमि पर कौन सी फैक्ट्रियां संचालित है इसके बारे में उद्योग विभाग से भी पुष्ट जानकारी नहीं मिल पा रही है। भौतिक सत्यापन होने पर ही फैक्ट्री में होने वाले कार्यों का सही और पूर्ण विवरण मिल पाएगा।

मात्र 300 वर्ग फुट में ही बनाना है स्टाफ क्वार्टर

इस मामले को लेकर जब हमने जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र के अधिकारियों से चर्चा की तो उन्होंने कहा कि हो सकता है स्टाफ क्वार्टर का निर्माण फैक्ट्री संचालक द्वारा किया गया होगा। जबकि छत्तीसगढ़ औद्योगिक भूमि एवं भवन प्रबंधन अधिनियम 2015 के तहत उद्योगों को लीज पर दी गई सरकारी जमीन पर सिर्फ 300 वर्ग फुट में ही स्टाफ क्वार्टर का निर्माण किया जाना है। जबकि ममता नगर इंडस्ट्रियल एरिया के भूखंडों में 300 वर्ग फुट से अधिक रकबे में पक्के मकान का निर्माण करा दिया गया है।

श्रम कानून और पर्यावरण प्रदूषण नियमों की भी नहीं है परवाह
ममता नगर इंडस्ट्रियल एरिया में संचालित फैक्ट्रियों में श्रम कानून, पर्यावरण प्रदूषण नियमावली और औद्योगिक सुरक्षा के मापदंड का पालन हो रहा है या नहीं यह देखने के लिए भी उद्योग विभाग के अधिकारियों के पास फुर्सत नहीं है। जबकि सरकारी भूमि आवंटन नियमों में उक्त मापदंड का पालन करना अनिवार्य है। कुल मिलाकर देखा जाए तो उद्योगपति ममता नगर इंडस्ट्रियल एरिया की करोड़ों की जमीन का वारा न्यारा करने में लगे हुए हैं। अब देखना यह है कि मामला उजागर होने के बाद प्रशासन द्वारा मामले में क्या कार्रवाई की जाती है।

************

error: Content is protected !!