IMG-20241026-WA0010
IMG-20241026-WA0010
previous arrow
next arrow

राजनांदगांव 30 दिसम्बर 2022। जिले में 37 हजार 16 हेक्टेयर क्षेत्र लक्ष्य के विरूद्ध 34 हजार 92 क्षेत्र में चना फसल की बोनी कर ली गई है। चने का उकठा या विल्ट रोग चने की फसल का यह रोग प्रमुख रूप से हानि पहुंचाता है। इस रोग का प्रकोप इतना भयावह है कि पूरा खेत इसकी चपेट में आ जाता है। उकठा रोग का प्रमुख कारक फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम नामक फफूद है। यह मृदा तथा बीज जनित बीमारी है। यह रोग पौधे में फली लगने तक किसी भी अवस्था में हो सकता है।
लक्षण – उकठा रोग के लक्षण शुरूआत में खेत में छोटे-छोटे हिस्सों में दिखाई देते है और धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाते है। इस रोग में पौधे के पत्तियाँ सुख जाती है उसके बाद पूरा पौधा हो मुरझा कर सुख जाता है। ग्रसित पौधे की जड़ के पास चिरा लगाने पर उसमें काली काली संरचना दिखाई पड़ती है।
रोकथाम – चना की बुवाई उचित समय यानि 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक करना चाहिए। गर्मियों में मई से जून में गहरी जुताई करने से फ्यूजेरियम फफूंद का संवर्धन कम हो जाता है। मृदा का सौर उपचार करने से भी रोग में कमी आती है। पांच टन प्रति हेक्टेयर की दर से कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। बीज को मिट्टी में 8 सेंटीमीटर की गहराई में बुवाई करना चाहिए। चना की उकठा रोग प्रतिरोधी किस्में लगाना चाहिए। उकठा रोग का प्रकोप कम करने के लिए तीन साल का फसल चक्र अपनाया जाना चाहिए। सरसों या अलसी के साथ चना की अन्तर फसल लगाना चाहिए। टेबुकोनाजोल 54 प्रतिशत डब्ल्यू, डब्ल्यू एफएस /4.0 मिलीलीटर, 10 किलोग्राम बीज के हिसाब से बीजोपचार करें। खड़ी फसल पर लक्षण दिखाई देने पर क्लोरोथालोनिल 70 प्रतिशत डब्ल्यूपी / 300 ग्राम एकड़ या कार्बेन्डाजिम, 12 प्रतिशत + मैनकोज़ब 63 प्रतिशत डब्ल्यूपी 500 ग्राम एकड़ की दर से 200 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव कर दें।

By Amitesh Sonkar

Sub editor

error: Content is protected !!