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  • नाट्य का प्रयोजन मनोरंजन के साथ समाज को शिक्षित करना भी है – डॉ. योगेंद्र चौबे
  • नाट्य कला ही नही ज्ञान और विज्ञान से परिपूर्ण तत्व है : प्राचार्य डॉ. टांडेकर

राजनांदगांव। शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा दिग्विजय व्याख्यानमाला के अंतर्गत आयोजित विशेष व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. योगेंद्र चौबे,(एसोसिएट प्रोफेसर नाट्य विभाग इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़) उपस्थित थे। उन्होंने नाटक के सैद्धांतिक और प्रयोगात्मक पक्ष पर विस्तृत प्रकाश डाला। उनका कहना है कि शास्त्र का कर्म में रूपांतरण ही प्रयोग है।आचार्य भरतमुनि द्वारा रचित प्रसिद्ध नाट्यशास्त्र सुदीर्घ प्रयोग का ही परिणाम है। आत्रेय आदि मुनियों द्वारा पूछे गए पांच प्रश्नों का समाधान ही 36 अध्यायात्मक नाट्यशास्त्र के रूप में हमारे समक्ष आता है।इसमें नाटक के सभी तत्वों जैसे रस, भाव, अभिनय, धर्मी, वृत्ति, प्रवृत्ति, सिद्धि, स्वर ,आतोद्य,गान और रंग के विषय में विस्तृत चर्चा प्राप्त होती है।

डॉ. चौबे के अनुसार नाटक संप्रेषण का माध्यम है। इसमें समाज के लिए एक संदेश होना चाहिए। नाटक केवल मनोरंजन का ही साधन नहीं अपितु समाज को शिक्षित करने का माध्यम भी है।रस के विषय में उनका कथन है कि रस को उत्पन्न नही अपितु महसूस किया जाता है। श्रोता या दर्शक नाटक को देखकर पात्रों के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेता है। संस्था के प्राचार्य डॉ. के. एल. टांडेकर का कहना है कि नाटक दृश्य होने के कारण प्रभावी होता है, जिसको आत्मसात कर वह अपने आदर्श की तरह बन सकता है।नाट्य केवल कला ही नही अपितु ज्ञान विज्ञान से परिपूर्ण तत्व है।
विभागाध्यक्ष डॉ. दिव्या देशपांडे ने कार्यक्रम का संचालन किया। डॉ. ललित प्रधान ने मुख्य वक्तव्य का संक्षिप्त सार प्रस्तुत किया। डॉ. महेंद्र नगपुरे ने आभार ज्ञापन किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में विभाग के छात्र छात्राएं उपस्थित थे।

By Amitesh Sonkar

Sub editor

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