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धर्म की स्थापना करने धरती पर अवतरित होते हैं भगवान_ अशोक शास्त्री

कवर्धा _शहर के वार्ड क्रमांक 19 में पूर्व पार्षद संतोष नामदेव के निवास स्थान पर श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान सप्ताह का आयोजन किया गया है । जिसमें कथा व्यास पंडित अशोक शास्त्री जी महाराज वृंदावन वाले के द्वारा कथा कहा जा रहा है। वही प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु गण कथा लाभ लेने पहुंच रहे हैं इसके साथ ही महाराज श्री अशोक शास्त्री जी के साथ में परायण कर्ता पंडित नितिन आचार्य, पंडित पंकज आचार्य ,पंडित विजय मिश्रा ,सहित अन्य सहयोगी शामिल है । पंडित अशोक शास्त्री के द्वारा आज भूगोल, खगोल, नरक वर्णन, आजमिल कथा ,भक्त प्रहलाद कथा के विषय में तथा नरसिंह अवतार को लेकर कथा कही गई । पंडित श्री शास्त्री जी ने बताया कि हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का भक्त था। वह असुरों के बच्चों को भगवान विष्णु की भक्ति के लिए प्रेरित करता था। जब इस बात की जानकारी हिरण्यकश्यप को चली तो उसने अपने बेटे से भगवान विष्णु की भक्ति को छोड़ने के लिए कहा। प्रह्लाद के मना करने पर वह नाराज हो गया और उसने अपने बेटे को कई यातनाएं दीं।

एक दिन उसने प्रह्लाद को समझाने के लिए राज दरबार में बुलाया। हिरण्यकश्यप ने अपने प्रह्लाद से कहा कि वह विष्णु भक्ति छोड़ दे, लेकिन प्रह्लाद ने मना कर दिया। फिर हिरण्यकश्यप अपने सिंहासन से क्रोध में उठा और कहा कि अगर तुम्हारे भगवान हर जगह मौजूद हैं तो इस खंभे में क्यों नहीं हैं? उसने उस खंभे पर जोर से प्रहार किया।

तभी उस खंभे से नरसिंह प्रकट हुए। उनका आधा शरीर नर और आधा शरीर सिंह का था। उन्होंने हिरण्यकश्यप को पकड़ लिया और घर की दहलीज पर ले जाकर उसे अपने पैरों पर लिटा दिया और अपने तेज नाखूनों से उसका वध कर दिया। उस समय गोधूलि वेला थी।

हिरण्यकश्यप का जिस समय वध हुआ, उस समय न ही दिन था और न ही रात। सूर्यास्त हो रहा था और शाम होने वाली थी। वह न घर के अंदर था और न घर के बाहर। उसे अस्त्र या शस्त्र से नहीं बल्कि नाखूनों से मारा गया। उसे किसी नर या पशु ने नहीं बल्कि भगवान नरसिंह ने मारा। वह न ही धरती पर था और व ही आसमान में, वह उस समय नरसिंह भगवान के पैरों पर लेटा हुआ था। इस प्रकार से हिरण्यकश्यप का वध हुआ और फिर से तीनों लोकों पर धर्म की स्थापना हुई।

By Rupesh Mahobiya

Bureau Chief kawardha

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