कर्णकान्त श्रीवास्तव
राजनांदगांव। प्रधानमंत्री नेशनल डायलिसिस प्रोग्राम के तहत जिला अस्पताल के लिए 5 डायलिसिस मशीन भेजी गई है। यह मशीन महीने भर पहले से अस्पताल बहुत चुकी है, लेकिन अस्पताल प्रबंधन अब तक इन मशीनों का इंस्टॉलेशन नहीं कर पाया है। समस्या वाली बात यह है कि मशीनों का इंस्टॉलेशन कर भी लिया गया तो इनके संचालन में काफी दिक्कतें आने वाली है क्योंकि अस्पताल प्रबंधन के पास मशीन चलाने के लिए एक्सपर्ट नहीं है। ऐसे में प्रशासन को आगे आकर निजी एक्सपर्ट की सहायता लेने के लिए पहल करनी होगी। तभी मरीजों को डायलिसिस का लाभ मिल सकता है।
अस्पताल के लिए भेजे गए डायलिसिस मशीनों की कीमत लाखों में है। इसमें कोई शक नहीं कि इन मशीनों के लग जाने से मरीजों को निशुल्क या फिर शासन द्वारा निर्धारित कम शुल्क में डायलिसिस का लाभ मिलेगा। चिंता का विषय यह है कि केंद्र सरकार द्वारा बिना धारातली सर्वे के बनाए गए योजना के तहत इन मशीनों को भेज तो दिया गया है लेकिन इन मशीनों के संचालन के लिए अब स्थानीय प्रशासन को एक और योजना बनानी पड़ेगी। ताकि बिना किसी रूकावट के इन मशीनों का संचालन हो सके।
कोलकाता की कंपनी को मिला है इंस्टॉलेशन का ठेका
अस्पताल प्रबंधन से मिली जानकारी के अनुसार केंद्र से आई डायलिसिस मशीन के इंस्टॉलेशन का ठेका कोलकाता के एक कंपनी को दिया गया है। प्रबंधन लगातार कंपनी से संपर्क कर रहा है लेकिन कंपनी के एक्सपर्ट आज कल में कहकर इंस्टॉलेशन के लिए लेटलतीफी कर रहे हैं। डायलिसिस मशीन को लगाने के लिए अस्पताल के एक बड़े कमरे को चिन्हित किया गया है। मशीनों के लिए आर ओ वाटर सिस्टम की भी आवश्यकता है जिसकी पूर्ति के लिए प्रक्रिया तेज कर दी गई है ऐसा अस्पताल के अधिकारियों का कहना है।
पांच मशीनों के हिसाब से लगेगा स्टॉफ
जानकारों की माने तो 5 डायलिसिस मशीनों के हिसाब से ही बेड व अन्य इक्विपमेंट लगेंगे। साथ ही इसी हिसाब से स्टाफ कर्मचारियों की भी आवश्यकता होगी जबकि जिला अस्पताल पहले से ही स्टाफ कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है। इसके अलावा सबसे अहम मशीन संचालन के लिए एक्सपर्ट की आवश्यकता है ताकि गंभीर मामलों का भी निपटारा किया जा सके। जिला अस्पताल प्रबंधन और जिला प्रशासन को इस मसले पर ध्यान देने की जरूरत है।
जानिए क्यों पड़ती है डायलिसिस की आवश्यकता
अपोहन (डायलिसिस) रक्त शोधन की एक कृत्रिम विधि होती है। इस डायलिसिस की प्रक्रिया को तब अपनाया जाता है जब किसी व्यक्ति के वृक्क यानि गुर्दे सही से काम नहीं कर रहे होते हैं। गुर्दे से जुड़े रोगों, लंबे समय से मधुमेह के रोगी, उच्च रक्तचाप जैसी स्थितियों में कई बार डायलसिस की आवश्यकता पड़ती है। स्वस्थ व्यक्ति में गुर्दे द्वारा जल और खनिज (सोडियम, पोटेशियम क्लोराइड, फॉस्फोरस सल्फेट) का सामंजस्य रखा जाता है। डायलसिस स्थायी और अस्थाई होती है। यदि अपोहन के रोगी के गुर्दे बदल कर नये गुर्दे लगाने हों, तो अपोहन की प्रक्रिया अस्थाई होती है। यदि रोगी के गुर्दे इस स्थिति में न हों कि उसे प्रत्यारोपित किया जाए, तो अपोहन अस्थायी होती है, जिसे आवधिक किया जाता है। ये आरंभ में एक माह से लेकर बाद में एक दिन और उससे भी कम होती जाती है।
हमने तो पत्राचार किया था– सिविल सर्जन
एक्स रिपोर्टर न्यूज़ से बातचीत के दौरान जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. केके जैन ने बताया कि केंद्र की योजना के तहत 5 डायलिसिस मशीन जिला अस्पताल के लिए भेजी गई है। कोलकाता की एक कंपनी मशीनों का इंस्टॉलेशन करेगी। जिनसे संपर्क किया गया है। डायलिसिस मशीन के संचालन के लिए जिला अस्पताल में एक्सपर्ट डॉक्टर नहीं है इसलिए हमने पहले ही उच्च अधिकारियों से पत्राचार कर मशीनों को मेडिकल कॉलेज भेजने की सलाह दी थी ताकि एक ही स्थान पर मरीजों को विभिन्न बीमारियों के उपचार की सुविधा मिल सके। लेकिन पत्राचार पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं हो पाई है।

B.J.M.C.
Chief Editor
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