राजनांदगांव। शिक्षा विभाग ने शिक्षा का अधिकार कानून का मजाक बनाकर रखा दिया है, क्योंकि विभाग ने जिन गरीब बच्चों को आरटीई के अंतर्गत प्राईवेट विद्यालयों में प्रवेश दिलाया, उनकी जानकारी ही विभाग में उपलब्ध नहीं है। प्रतिवर्ष प्राईवेट विद्यालयों को करोड़ों की प्रतिपूर्ति राशि भुगतान की जा रही है और विभाग में इसकी जानकारी भी उपलब्ध नही है।
विभाग ने एक सहायक संचालक को आरटीई नोडल ऑफिसर नियुक्ति किया है, लेकिन विभाग के पास आरटीई के बच्चों की जानकारी ही उपलब्ध नही है। कोरोना काल में बंद हुए प्राईवेट विद्यालयों में कितने आरटीई के गरीब बच्चों को प्रवेश दिलाया गया था और वे आज किन-किन स्कूलों में पढ़ रहे है इसकी जानकारी भी संदेहास्पद है, क्योंकि पालकों ने आरोप लगाया है कि आरटीई नोडल ऑफिसर ने इस संबंध में विधानसभा में मिथ्या जानकारी प्रस्तुत किया है। मामला पुलिस थाने तक पहुंच चुका है।
जिले में लगभग 108 प्राईवेट स्कूल ऐसे है, जहां सिर्फ कक्षा आठवीं तक ही कक्षाएं संचालित है और लगभग 60 ऐसे प्रायवेट स्कूल ऐसे है, जहां सिर्फ कक्षा दसवीं तक ही कक्षाएं संचालित है और लगभग 120 ऐसे प्राईवेट स्कूल ऐसे है, जहां सिर्फ कक्षा पांचवीं तक ही कक्षाएं संचालित है। इन स्कूलों में आरटीई के बच्चों को प्रवेश दिलाया जाता है, लेकिन उन्हें शिक्षा पूर्ण कराने यानि कक्षा बारहवीं तक शिक्षा दिलाने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है, जिससे प्रतिवर्ष सैकड़ों बच्चे या तो पढ़ाई छोड दे रहे है या अन्य स्कूलों में मजबूरी में फीस देकर पढ़ाई पूरी कर रहे है।
छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल का कहना है कि आरटीई के गरीब बच्चों को कक्षा बारहवीं तक पढ़ाने की पूर्ण जिम्मेदार शिक्षा विभाग की है, लेकिन विभाग कार्यरत आरटीई नोडल ऑफिसर की घोर लापरवाही और उदासीनता के कारण प्रतिवर्ष सैकड़ों आरटीई के गरीब बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे है, इसकी जानकारी डीईओ को दी जा चुकी है।
