भाषा की स्वाभाविक प्रकृति परिवर्तनशील है : डॉ. देशपांडे
- दिग्विजय महाविद्यालय के हिंदी विभाग में अंतर्विषयक व्याख्यान
राजनांदगाव। शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय प्राचार्य डॉ. के. एल. टांडेकर के निर्देशन में हिंदी विभाग द्वारा अंतर्विषयक व्याख्यान आयोजित किया गया। इसमें संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. दिव्या देशपांडे ने विषय विशेषज्ञ के रूप में भाषा की परिवर्तनशीलता पर भाषा वैज्ञानिक रीति से व्याख्यान दिया।
विभागाध्यक्ष डॉ. देशपांडे ने बताया कि भाषा की स्वाभाविक प्रकृति परिवर्तनशील है। यह समय के साथ अपना शाब्दिक अर्थ बदलती रहती है। भाषा विज्ञान में इसे अर्थपरिवर्तन की दिशाएं कहा जाता है। आपने आगे सोदाहरण समझाया कि किस प्रकार शब्दों का अर्थ संकुचन और अर्थविस्तार होता है। उल्लेखनीय है कि इस तरह का भाषिक बदलाव सभी भाषाओं में होता है।
प्राचार्य और विभागीय प्राध्यापकों की उपस्थिति में संपन्न इस आयोजन में स्नातकोत्तर हिंदी विषय के सभी विद्यार्थी शामिल थे। इस अवसर पर प्राचार्य डॉ. टाण्डेकर ने कहा कि अंतर्विभागीय व्याख्यान का उद्देश्य है विद्यार्थियों में अंतर्विषयक समझदारी विकसित करना। इस तरह के आयोजन से प्राध्यापकों की बहुविध प्रतिभा का समुचित उपयोग भी होता है और विद्यार्थियों को इसका लाभ भी मिलता है। इस विशेष व्याख्यान के लिए हिंदी विभाग के प्राध्यापकों की सराहना भी की और सुझाव भी दिए कि ऐसे व्याख्यान भविष्य में भी होने चाहिए।
कार्यक्रम की शुरुआत विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर मुनि राय के स्वागत संबोधन से हुआ और डॉ. नीलम तिवारी ने संचालन करते हुए अंत में आभार प्रकट किया।

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