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अविरल भक्ति में डूबना प्रमोशन है, और दूर रहना डिमोशन पं. मिश्रा

फोटो: 01 श्री कृष्ण व गोपियो का रूप धारण किए बच्चे

बेमेतरा: 8 फरवरी 2022:- प्रभु भक्ति तारने वाली होती है और भक्त के 26 लक्षण होते हैं। शांत, मौन रहकर भी भक्ति में डूबे रहना सबसे बड़ा लक्षण है। प्रभु भक्ति, साधना, तप,भजन, सत्संग में जो डूबा रहता है, उसे लोग पागल कहने लगते है। भगवान की अविरल भक्ति में डूब कर रहना प्रमोशन है, जबकि भक्ति से दूर रहकर समझदारी दिखाना डिमोशन के समान है। उक्त बातें पुरानी बस्ती रांका के बैगा बावा चौक के पास चल रहे श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताह ज्ञान यज्ञ में कथावाचक पं. पुरुषोत्तम मिश्रा ने कही।
पं. मिश्रा ने मंगलवार को सुदामा चरित्र की कथा सुनाई। कहा कि सुदामा संसार में सबसे अनोखे भक्त रहे हैं। वह जीवन में जितने गरीब नजर आए उतने वे मन से धनवान थे। उन्होंने अपने सुख और दुखों को भगवान की इच्छा पर सौंप दिया था। जब सुदामा भगवान कृष्ण से मिलने आए तो उन्होंने सुदामा के फटे कपड़े नहीं देखे बल्कि मित्र की भावनाओं को देखा। मनुष्य को अपना कर्म कभी नहीं भूलना चाहिए। अगर सच्चा मित्र है तो श्री कृष्ण और सुदामा की तरह होना चाहिए। जीवन में मनुष्य को कृष्ण की तरह अपनी मित्रता निभानी चाहिए।

कथा श्रवण कृष्ण बीमा है

प्रभु भक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हुए पं. मिश्रा ने कहा कि लोग जीवन सुरक्षा के लिए बीमा कंपनियों से बीमा कराते है लेकिन उसका लाभ खुद को ना मिलकर परिवार को मिलता है। जबकि कथा पंडाल में कथा श्रवण करने से जो कृष्ण बीमा होता है उसका लाभ मृत्यु के बाद भी खुद को मिलता है सौभाग्यशाली वे लोग होते हैं जिन्हें कृष्ण कथा श्रवण करने का अवसर मिलता है क्योंकि जब भी उन्हें सच्चे मन से याद करोगे वह तुम्हारे सामने किसी न किसी रूप में आ जाएंगे क्योंकि वे कण-कण में विराजमान हैं।

फोटो 02 कथा सुनाते पंडित पुरुषोत्तम मिश्रा

जीवन के सद्कर्म व पुण्य ही साथ जाएंगे

पं. मिश्रा ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो तो भगवान श्री कृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझें और बिना बताए ही मदद कर दे। लेकिन आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता भी खत्म हो जाती है।श्री कृष्ण और सुदामा के मिलन प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भावविभोर हो गए। उन्होंने कहा कि जीवन मे किए गए पुण्य व सद्कर्म ही साथ जाएंगे। जब तक शरीर स्वस्थ है, तब तक दान, पुण्य, सत्संग, कथा करा लो, बाद में पछताते रह जाओगे।

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