कण भर का अभिमान मन भर के ज्ञान को नष्ट कर देता है : संवेग रतन सागर
राजनांदगांव 19 जनवरी। जैन मुनि संवेग रतन सागर जी ने आज यहां कहा कि कण भर का अभिमान मन भर के ज्ञान को नष्ट कर देता है। उन्होंने कहा कि जिसने अपने दिमाग को किराए पर दे दिया है, उसे अहंकारी कहते हैं और जो अहंकारी होते हैं उन्हें देवगुरु धर्म तारक तत्व कभी प्राप्त नहीं होते।
मुनि श्री ने कहा कि अच्छे विचार मेहमान की तरह होते हैं जो काफी बुलावे पर आते हैं और बुरे विचार डकैत की तरह होते हैं जो बिना बुलाए ही आ जाते हैं। मान कषाय जहां आता है वहां माया कषाय भी अपने आप आ जाती है। इसी तरह अभिमान को भी बुलाने की जरूरत नहीं पड़ती, थोड़ा ज्ञान आता है और अभिमान अपने आप साथ चला आता है। उन्होंने कहा कि यदि व्यक्ति देव गुरु धर्म रूपी तारक तत्व को प्राप्त कर लेता है और वह अभिमान करता है तो वह देव गुरु धर्म रूपी तारक तत्व को प्राप्त करने के बाद भी तृप्त नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि जीव यदि सामान्य चक्षु से अंधा होता है तो वह किसी से ज्ञान लेकर अपनी मंजिल तक पहुंच जाएगा किंतु कोई ज्ञान चक्षु वाला अंधा होता है तो उसे कितना भी ज्ञान दे दो, वह उसे ग्रहण नहीं करता और अभिमान को लेकर वह भटकता रहता है।
मुनिश्री ने कहा कि जिसे ज्ञान की भूख हो वह आगे समाधि को प्राप्त कर सकता है बशर्ते प्रमाद (अभिमान) उस पर हावी न हो। उन्होंने कहा कि पानी का एक स्वभाव है कि वह हमेशा नीचे की ओर बहता है जबकि हमारी भावना उर्ध्व गति को प्राप्त करने की होती है। हमें प्रमाद से दूर रहना चाहिए और ज्ञान प्राप्ति की भूख होनी चाहिए तभी हम परमात्मा को प्राप्त कर सकेंगे।

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