IMG-20241026-WA0010
IMG-20241026-WA0010
previous arrow
next arrow

वर्मी कम्पोस्ट एक चमत्कारिक प्लांट ग्रोथ इनहैन्सर,  जानिए कैसे?
– मृदा संबंधी बीमारियों और कीटों के प्रकोप को रोकने में कारगर
– शासन द्वारा गोधन न्याय योजना के माध्यम से 10 रूपए किलो में वर्मी कम्पोस्ट तथा 6 रूपए किलो में सुपर कम्पोस्ट किसानों के लिए उपलब्ध
राजनांदगांव 23 जुलाई 2021। वर्मी कम्पोस्ट एक ऐसा चमत्कारिक खाद है, जिसमें संतुलित मात्रा में नत्रजन 2-3 प्रतिशत, फास्फोरस 1-5-2.25 प्रतिशत , पोटेशियम 1.85-2.25 प्रतिशत तथा सूक्ष्म पोषकतत्व और असंख्य मात्रा में लाभदायक सूक्ष्म जीव जैसे नाईट्रोजन घोलक जीवाणु, माइकोराइजा, फंगी, ट्रायकोडर्मा, स्यूडोमोनास, एवं एक्टिनोमाईसिटीज की अधिकता होती है। जितनी अधिक मात्रा में खेतों में लाभदायक सूक्ष्म जीव मौजूद रहेंगे, उतने बराबर मात्रा में आक्सीजन, मृदा ताप में कमी, मृदा रन्ध्र में वृद्धि होगी, जिससे पोषक तत्व सीधे जड़ों को प्राप्त होगा, पानी को भूमि के भीतर जाने में आसानी, पोषक तत्वों की क्षमता में वृद्धि होगी। जिसका सीधा असर पौधों की गुणवत्ता और ज्यादा उपज के रूप में देखने को मिलता है। शोध से पता चला है कि वर्मी कम्पोस्ट के खेतों में उपयोग से धान की फसल की विभिन्न अवस्था जैसे वानस्पतिक वृद्धि, तना व जड़ों के विकास में जबरदस्त ग्रोथ देखने को मिलता है।
धान फसलों में पौधों के विकास को बढ़़ाने के अलावा दलहनी फसलों में वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से यह पाया गया कि मृदा सूक्ष्म जीवों की गतिशीलता के कारण पौधों मेें जड़ संबंधी रोग नहीं होते। मुख्यत: चने में जड़ संबंधी रोग जैसे कि उकठा और कालरराठ जैसे बीमारी जो कि भूमि जनित रोग होते हंै, बहुत हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं। साथ ही टमाटर में फ्यूजेरियम फंगस के कारण होने वाले रोग को भी नियंत्रित किया जा सकता है। वर्मी कम्पोस्ट तथा वर्मी वॉस के उपयोग करने से भिंडी में पाउडरी मिल्ड्यू तथा एलोवेन मोजेक बीमारी के रोकथाम में भी कारगार साबित हुआ है।
वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से रस चूसक कीट जैसे एफिड, बैंगन सूट और फ्रुट बोरर, चने का फलीभेदक कटवा इल्ली, जो अधिकतर बैंगन, टमाटर आदि सब्जी वर्गीय फसलों को ज्यादा प्रभावित करते है कि संख्या को कम करने में लाभदायक है, क्योंकि इन कीटों के अण्डे व लारवा फसल अवधि के दौरान मिट्टी में ही पनपते हैं। वर्मी कम्पोस्ट के साथ ही वर्मी वॉस का उपयोग खेतों में करने से इन कीटों के प्रतिरोधी जीवाणु व फफूंद की संख्या की खेतों में बढ़ोत्तरी होती है, जो इन कीटों की वृद्धि को रोकते हैं तथा संख्या को नियंत्रित कर फसलों को नुकसान से बचाते है।
वर्तमान समय में खेतों में नेकमाटोड जो कि मृदा से पौधों की जड़ों में प्रवेश कर पौधों की जड़, तने, पत्ती, फूल व बीज को संक्रमित करते हंै व इनकी संख्या में वृद्धि होने के कारण फसलों का विकास बाधित होता है और उपज में गिरावट देखने को मिल रहा है। ऐसे नेमाटोड प्रभावित खेतों में वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से खेतों में राइजोबैक्टिरिया की संख्या में वृद्धि होती है, जो नेमाटोड के द्वारा उत्पन्न होने वाले जहरीले एन्जाइम को घटाता है।
वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग खेतों में आधार मात्रा या बेसल डोज के रूप में अर्थात् बोने के समय खेत में डालना चाहिए। रोपा धान में रोपाई के समय खेत में डालना चाहिए। खाद्यान्न दलहन, तिलहन आदि में अनुशंसित पोषक तत्व की मात्रा का 75 प्रतिशत रासायनिक उर्वरकों द्वारा तथा शेष मात्रा के लिए 5-6 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट या 4 क्विंटल सुपर कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए। उद्यानिकी फसल में अनुशंसित पोषक तत्व मात्रा का 75 प्रतिशत रासायनिक उर्वरकों से 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सुपर कम्पोस्ट से दिया जाना चाहिए। किसान इस उत्तम जैविक खाद का उपयोग अपने खेतों में करने के लिए बहुत ही कम दाम में समीप के सेवा सहकारी समिति में 10 रूपए किलो में वर्मी कम्पोस्ट एवं 6 रूपए किलो में सुपर कम्पोस्ट का क्रय कर सकते हैं।

By Karnkant Shrivastava

B.J.M.C. Chief Editor Mo. No. 9752886730

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!