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  • महंत राजा दिग्विजय दास जी ने उच्च शिक्षा की ज्योति प्रज्ज्वलित की – प्राचार्य डॉ. टांडेकर
  • हमारी सरकार पर्यटन उद्योग को बढ़ावा दे रही है – अध्यक्ष जनभागीदारी रईस अहमद शकील

राजनांदगांव। शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय, राजनांदगांव के अर्थशास्त्र एवं वाणिज्य विभाग के संयुक्त तत्वधान में “पर्यटन उद्योग: विकास, चुनौतियां एवं संभावनाएं” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है।उद्घाटन सत्र में देवी सरस्वती की वंदना व राजगीत की प्रस्तुति – पश्चात अतिथियों का स्वागत किया गया।

महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. के.एल. टांडेकर ने अतिथियों का स्वागत करते हुए पर्यटन की आवश्यकता एवं महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने इस महाविद्यालय के मूर्धन्य साहित्यकारों का स्मरण करते हुए कहा की इस महाविद्यालय के माध्यम से महंत राजा दिग्विजय दास ने उच्च शिक्षा की ज्योति प्रज्ज्वलित की।

मुख्य अतिथि श्री कृष्णा विश्वविद्यालय छतरपुर, मध्य प्रदेश से पधारे माननीय कुलपति डॉ. अनिल धगट जी ने कहा कि सूचना क्रांति की इस बॉर्डर लेस दुनिया में पर्यटन उद्योग एक नई दिशा की ओर अग्रसर हो रहा है। नवयुवकों के लिए पर्यटन उद्योग में अपार संभावनाएं हैं। पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार भी प्रतिबद्ध है। देश के प्रत्येक नागरिक को प्रतिवर्ष कम से कम 15 पर्यटन स्थलों का भ्रमण करना चाहिए ताकि पर्यटन के विकास में सबका योगदान हो सके। विशिष्ट अतिथि डॉ. एच.पी.सिंह सलूजा, अधिष्ठाता, वाणिज्य संकाय, हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग ने कहा कि सब के विचारों से एक नया विचार आता है ।

विशिष्ट अतिथि, महाविद्यालय जनभागीदारी समिति अध्यक्ष श्री रईस अहमद शकील जी ने 33 वर्ष पूर्व अपनी अजमेर शरीफ की साइकल यात्रा की स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि हमारे देश की विविधता एवं सांस्कृतिक समृद्धि को पर्यटन के द्वारा ही जाना एवं समझा जा सकता है। संयोजक डॉ. एस.के. उके ने शोध संगोष्ठी की रूपरेखा एवं उद्देश्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला।

प्रथम तकनीकी सत्र के विषय विशेषज्ञ डॉ. तुषार विनायक चौधरी, सहायक प्राध्यापक, सेठ के.पी. महाविद्यालय कामठी नागपुर ने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से पर्यटन के प्रकार, भारत में पर्यटन की विशेषताएं एवं संभावनाओं पर व्यावहारिक चर्चा की। सत्र के अध्यक्ष नागपुर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक एवं पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. आर. वाय. माहोरे ने पर्यटन चुनौतियों में बड़ी बाधा बुनियादी ढांचा का अभाव, पर्यटन स्थल में स्वच्छता का अभाव, इंटरनेट सुविधा का अभाव, वीजा अनुमति में देरी और पर्यटकों की समुचित सुरक्षा का अभाव, को बताया। उन्होंने सरकार द्वारा चलाए जा रहे “अतुल्य भारत योजना” एवं “धरोहर गोद लो योजना” के साथ ही रात्रिकालीन पर्यटन को बढ़ावा देने की बात कही।

द्वितीय तकनीकी सत्र में विषय विशेषज्ञ डॉ. एस. पी. सलूजा ने छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थलों का उल्लेख करते हुए कहा कि पर्यटन उद्योग के लिए पर्याप्त प्रचार- प्रसार की आवश्यकता है। सत्र के अध्यक्ष इलाहाबाद से पधारे वरिष्ठ प्राध्यापक, डॉ. प्रहलाद कुमार ने कहा कि पर्यटन सेवा का क्षेत्र है। हमारी विनम्रता, सरलता और आतिथ्य का भाव ही विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता है।

तृतीय सत्र में डॉ. अनिल जैन ने पर्यटन उद्योग की समस्याएं और संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की। डॉ. शंकर मुनि राय, डॉ.बी. एन. जागृत और डॉ. अनिता शंकर प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय सत्र के रिपोर्टर रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. नीलू श्रीवास्तव, डॉ.अनिता साहा, डॉ. महेश श्रीवास्तव, डॉ. सुमीता श्रीवास्तव ने किया। सत्रवार आभार ज्ञापन डॉ. डी.पी. कुर्रे, प्रो. एच. सी जैन, डॉ. एस. के. उके और डॉ. महेश श्रीवास्तव ने किया। विभिन्न महाविद्यालयों से आए प्रतिभागियों ने शोध पत्र का वाचन किया। बड़ी संख्या में विद्यार्थी, शोधार्थी एवं प्राध्यापकगण इस सेमिनार में उपस्थित थे।

By Amitesh Sonkar

Sub editor

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