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  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में विकसित भारत की संकल्पना झलकती है: जिलाधीश संजय अग्रवाल

राजनांदगांव। शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव के वाणिज्य विभाग द्वारा विकसित भारत 2047 चुनौतियां एवं संभावनाएं विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया जहां शोधार्थियों ने 2047 के विकसित भारत की चुनौतियां एवं संभावनाएं की परिकल्पना को प्रस्तुत किया। अतिथियों ने कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलित कर किया।

शोध संगोष्ठी के मुख्य अतिथि कृष्ण विश्वविद्यालय, छतरपुर (म.प्र.) कुलपति डॉ. अनिल धगट, अध्यक्षता दिग्विजय महाविद्यालय प्राचार्य डॉ. के. एल टांडेकर एवं विशिष्ट अतिथि जिलाधीश राजनांदगांव, संजय अग्रवाल, भारती विश्वविद्यालय, दुर्ग डॉ. कुबेर सिंह गुरूपंच एवं कामर्स कालेज गुवाहाटी (असम) सह. प्राध्यापक डॉ. गौर गोपाल बनिक विषय विशेषज्ञ डायरेक्टर इंटर नेशनल कोलाबरेशन, रायपुर की प्राध्यापक गिन्नी जैन उपस्थित रहे।

आयोजन पर प्रकाश डालते हुए वाणिज्य विभागाध्यक्ष एवं शोध संगोष्ठी के संयोजक डॉ. एस. के. उके ने बताया कि भारत सरकार द्वारा संचालित इस कार्यक्रम में महाविद्यालय में राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी से आजादी के 100 वर्ष पूर्ण होने तक विकसित भारत के भावी स्वरूप पर “शोध आलेख” विकसित भारत @ 2047 में शोधार्थी के विचार समाहित किया जाना है।

संरक्षक एवं प्राचार्य डॉ. टांडेकर ने कहा कि भारत विश्व की 5वीं सबसे बड़े अर्थव्यवस्था है। विकसित भारत 2047 का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए विकास के जैवविविधता, पर्यावरण, जलवायु तकनीकी आदि हर क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ाने की महत्ती आवश्यकता है।

मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. धगत, ने सेमिनार के संक्षेपिका का विमोचन किया और अपने उद्बोधन में विकसित भारत 2047 बनने के रास्तों में आने वाले चुनौतियों को विस्तार से समझाया। विकसित देशों के प्रति व्यक्ति एवं भारत देश के प्रति व्यक्ति आय के अंतर को बताते हुए कहा की देश के युवाओं में कौशल होना आवश्यक है ताकि इसे सामाजिक उन्नति में बदला जा सके। वहीं प्रो. धगत ने कहा की हमारी शिक्षा केवल डिग्री प्राप्त करने तक सिमित न हो। उन्होंने स्व रोजगार के प्रति लोगों के सामाजिक सोच में बदलाव लाने की वकालत की ताकि स्वरोजगार को सरकारी नौकरियों से कम न आँका जायें।

जिलाधीश श्री संजय अग्रवाल ने कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना विकसित भारत का पैमाना होना चाहिए स्वास्थ्य और शिक्षा दो विकास के दो प्रारंभिक चरण ही जिसमें सुधार कर हम एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।

भारतीय विश्वविद्यालय, दुर्ग डॉ. गुरूपंच ने कहा है कि मानव ज्ञान का सबसे बड़ा संसाधन हैं और इस लक्ष्य को विचारों के आदान-प्रदान के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। तथा संसाधनों को विकसित कर चुनौतियों को दूर करके हम विकास के क्षेत्र में अग्रणी हो सकते हैं।

सह. प्राध्यापक डॉ. बनिक ने छत्तीसगढ़ संस्कृति की प्रशंसा करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानंद ने जिस प्रकार युवा शक्ति को आगे बढ़ाया आज उसी ऊर्जा और जोश की आवश्यकता विकसित भारत के लिए महसूस होती है। गांव, नगरों का सर्वांगीण विकास के द्वारा 2047 विकसित भारत की संकल्पना साकार हो सकतीं हैं। मर्यादा पूर्व कार्य करते हुए भ्रष्टाचार को दूरकर इस लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।

विषय विशेषज्ञ प्राध्यापक गिन्नी जैन ने कहा कि विकसित भारत युवा शक्ति आगे लाने की परिकल्पना ही जागरूकता के अभाव में हम अवसरों को खो देते है। भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में नारी शक्ति का अमूल्य योगदान होगा।

संगोष्ठी के प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ. डी.पी. कुर्रे विभागाध्यक्ष अर्थशास्त्र, द्वितीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ. प्रीति बाला टांक विभागाध्यक्ष भौतिक शास्त्र, तृतीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ. अंजना ठाकुर विभागाध्यक्ष राजनीति विभाग ने किया। तकनिकी सत्र में विभिन्न शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये।

इस शोध संगोष्ठी में मंचासीन अतिथियों का स्वागत शाल, श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह प्रदान कर किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. एच. सी. जैन, सुमन कोचर, रागिनी पराते एवं डॉ प्रज्ञा मिश्रा द्वारा किया गया। आभार प्रदर्शन श्रीमती सुमन कोचर, स्वयं सिद्ध झा, डॉ प्रज्ञा मिश्रा एवं प्रतिभा सिंह द्वारा किया गया । कार्यक्रम में महाविद्यालय के रजिस्ट्रार दीपक परगनिया, वरिष्ठ प्रध्यापक डॉ. अनीता महेश्वर, डॉ महेश श्रीवास्तव, सोनल मिश्रा सहित महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापक, अन्य महाविद्यालय के प्राध्यापक, शोधार्थी तथा छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में शामिल हुए।

By Amitesh Sonkar

Sub editor

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