एक्स रिपोर्टर न्यूज़ । राजनांदगांव
आज पूरा देश अयोध्या में भगवान श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव मना रहा है। कई दशकों के लंबे इंतजार के बाद अयोध्या में मंदिर बनाने का सपना साकार हुआ है। इसे साकार करने के लिए देशभर के कारसेवकों को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। कारसेवकों के योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। स्वर्गीय श्री रामकृष्ण निर्वाणी इन्हीं कारसेवकों में से एक रहे। अभाव में भी स्वभाव में परिवर्तन न लाने वाले स्व. श्री रामकृष्ण निर्वाणी परिवार का मोह छोड़ तमाम पाबंदियों के बावजूद सुरक्षा कर्मियों से बचते छिपते अयोध्या तक पहुंचे और कथित तौर पर अतिक्रमण कर बनाए गए भवन के गुंबद पर चढ़कर विरोध प्रदर्शन किया। परिजनों के मुताबिक ऐसा करने वाले श्री निर्वाणी संस्कारधानी के इकलौते कारसेवक रहे। परिजनों के हवाले से आईए जानते हैं पूरा वृतांत-
एक दिन वे अचानक आए और कहने लगे मुझे अयोध्या निकलना है। शाम का समय था, मना किए तब भी नहीं माने, दो जोड़ी कपड़ा और एक कंबल लेकर निकले पड़े। वहां गोली-बारी में कई साधु-संत और कार सेवकों की मौत की खबरें आतीं थीं, कभी अनहोनी होने का ख्याल भी आता था, लेकिन हमें भगवान प्रभु श्रीराम पर विश्वास था, कि वे जरूज आएंगे। दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद के टूटने की खबर आई। इसके बाद वे लौटे। स्टेशन से उन्हें लोग कंधे पर बिठाकर लाए। जगह-जगह स्वागत सत्कार हुआ। उन्हें देखकर आंसू नहीं रूक रहे थे। यह जानकारी कारसेवक स्वर्गीय श्री रामकृष्ण निर्वाणी की धर्म पत्नी 72 वर्षीय बसंतलता निर्वाणी जी ने दी।
बता दें कि 10 जून 1942 में जन्मे स्व. रामकृष्ण जी ने एलएलबी (वकालत) की पढ़ाई की। 15 साल की उम्र में आरएसएस से जुड़े। छत्तीसगढ़ में आरएसएस को विस्तार देने का काम श्री निर्वाणी ने ही किया। पूरा जीवन परोपकार और सेवा में गुजार दिया। वे अयोध्या से भगवान रामलला का मंदिर बनाने का संकल्प लेकर लौटे थे और बार-बार कहते थे सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे। 65 साल की उम्र में 19 नवंबर 2007 को उनका स्वर्गवास हो गया।
खुद को छुपाने धारण किया भिक्षु का वेश
स्व. रामकृष्ण निर्वाणी के पुत्र मनोज निर्वाणी ने बताया कि जब पिताजी अयोध्या गए तो वे महज 8 साल के थे, पूरे सवा महीने बाद जब वे लौटे, तो उन्होंने बताया यहां से ट्रेन पकडक़र वे अयोध्या के लिए निकल पड़े थे, लेकिन सौ किमी पहले ही पुलिस, लोगों को वहां जाने से रोक रही थी। लाठी-डंडे और गोली तक बरसा रहे थे, ऐसे में उन्होंने ओढऩे के लिए रखे कंबल को सिर पर डालकर भिक्षु होने का नाटक करते हुए कई किमी पैदल चलकर अयोध्या तक पहुंच गए, लेकिन मंदिर तक पहुंचना मुश्किल था। उन्होंने बताया था कि कई लोगों की उनके सामने ही मौत हो गई। इसके बाद भी वे सात दिनों तक बाबरी मस्जिद के पीछे छिपे रहे और गुंबद पर चढ़कर विरोध प्रदर्शन किया और माहौल शांत होते ही लौट आए।
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