एक्स रिपोर्टर न्यूज़ । राजनांदगांव
जिले में सैंकड़ों की संख्या में पैथोलॉजी लैब संचालित हो रही हैं। इसमें से कुछ पैथालॉजी लैब के ही रजिस्ट्रेशन हैं, शेष लैब बिना पंजीयन के संचालित हो रही हैं। लेकिन इनका संचालन रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग गंभीर नहीं है। इन पैथालॉजी लैब का स्वास्थ्य विभाग में पंजीयन भी नहीं है। जबकि नर्सिंग होम एक्ट के तहत विभाग में लैब का पंजीयन होना जरूरी है। लेकिन अवैध तरीके से चल रहे पैथोलॉजी सेंटर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। स्वास्थ विभाग के अफसरों से मामले की शिकायत भी की जा रही है तो वे जिला प्रशासन के आला अधिकारियों के सुपरविजन के इंतजार की बात कहकर मामले से पल्ला झाड़ रहे है।
वहीं ब्लड कलेक्शन की आड़ में इन पैथाेलॉजी में सभी प्रकार की जांचें की जा रही हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा ठोस कदम नहीं उठाए जाने से लैब सेंटर मालिकों के हौंसले बुलंद हैं। अकेले राजनांदगांव शहर में काफी संख्या में पैथोलॉजी लैब संचालित हो रही हैं। इसके अलावा डोंगरगांव, छुरिया, सोमनी, तुमड़ीबोड़ और घुमका में भी खुलेआम खून की जांच करने वाली इन पैथोलॉजी लैब का संचालन किया जा रहा है। बिना रजिस्ट्रेशन संचालित इन पैथोलॉजी लैब में सालों से डेंगू, मलेरिया की जांच की जा रहीं हैं। कई बार इन पैथोलॉजी लैब की जांच गलत आने पर स्वास्थ्य विभाग में शिकायत भी की गई है। जिस पर किसी अधिकारी ने ध्यान नहीं दिया है।
रिपोर्ट से पैथोलॉजिस्ट का नाम ही गायब
खास बात तो यह है कि इन पैथोलॉजी लैब रिपोर्ट पर किसी पैथोलॉजिस्ट का नाम तक नहीं हैं। बावजूद इसके ये पैथोलॉजी लैब संचालक धड़ल्ले से बिना कार्रवाई के डर के अपनी पैथोलॉजी लैब संचालित करते नजर आ रहे हैं। गौरतलब है कि नियमानुसार माह में एक बार पैथोलॉजी की जांच करना अनिवार्य है, लेकिन इसके बाद भी विभाग द्वारा आज तक जिलेभर की पैथोलॉजी लैब पर जाकर जांच नहीं की जा रही है।
झोलाछाप लिखते हैं, इन पैथोलॉजी लैब से जांच कराना मजबूरी
अधिकतर पैथोलॉजी लैब झोलाछाप डॉक्टरों के द्वारा संचालित की जा रही हैं। क्योंकि कमीशन का मोटा हिस्सा झोलाछाप डॉक्टरों को दिया जाता है। झोलाछाप डॉक्टर भी किसी भी बुखार के मरीज को तत्काल डेंगू और मलेरिया की जांच लिखकर पैथोलॉजी लैब पर भेजते हैं। इन पैथोलॉजी लैब संचालकों के द्वारा एक-एक मरीज से जांच के एवज में तीन गुना तक पैसे वसूल कर लिए जाते हैं। वहीं जांच को लेकर 150 से 700 रुपए तक रुपए लिए जा रहे है। इसके अलावा संचालक मरीजों को रसीद तक उपलब्ध नहीं करा रहे हैं। इस वजह से मरीज काफी परेशान हैं।
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