मत्स्य पालन के क्षेत्र में बढ़ोतरी के लिए कलकत्ता से आए वैज्ञानिकों ने जलाशयों में पेन कल्चर सामग्री लगाया
बहेराखार, सुतियापाठ, और परलकोट जलाशय छत्तीसगढ़ में पेनकल्चर प्रदर्शन सह जागरूकता कार्यक्रम आयोजित
कवर्धा। राज्य शासन के मंशानुरूप कलेक्टरP जनमेजय महोबे के निर्देश पर जिले में तकनीकी माध्यमों से मछली पालन को बढ़ावा देने तथा बेहतर बनाने के लिए विशेष जोर दिया जा रहा है।
जिला अंतर्गत सिंचाई जलाशय बहेराखार और सुतियापाट में पेन कल्चर अन्तर्गत मत्स्य पालन के क्षेत्र में बढ़ोतरी के लिए बैरकपुर कलकत्ता से आए मत्स्य वैज्ञानिकों द्वारा जलाशयों में पेन कल्चर सामग्री लगाया जा रहा है। आईसीएआर सिफ़री ने अनुसूचित जनजाति घटक के तहत मत्स्य निदेशालय छत्तीसगढ़ के सहयोग से बहेराखार, सुतियापाठ, और परलकोट जलाशय छत्तीसगढ़ में पेनकल्चर प्रदर्शन सह जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्रीय अन्तस्थलीय मात्स्यिकी अनुसन्धान संस्थान बैरकपुर के द्वारा मत्स्य विभाग के माध्यम से समिति को पेन विधि के उचित क्रियान्वय के लिए 02 एफआरपी कोराकल 01 इंजिन, नाव 02 टन मत्स्य आहार, 113 मीटर के 02 एचडीपीई पेन सामग्री भी प्रदान किया गया। कार्यक्रम का संचालन श्री कौशिक मंडल, तकनीकी सहायक बैरकपुर (सिफ़री) व मत्स्य विभाग के अधिकारीयों एवं जलाशयों की मछुवा सहकारी समितियों व अन्य सदस्यों समर्थन से सम्पन्न किया गया। जागरूकता कार्यक्रम में मछली पालन विभाग के सहायक संचालक रामधन सिंह विशेष रूप से उपस्थित थे।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्रीय अन्तस्थलीय मात्स्यिकी अनुसन्धान संस्थान बैरकपुर (सिफ़री) ने छत्तीसगढ़ मत्स्य विभाग के साथ साजेदारी में आदिवासी आबादी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के उत्थान के लिए पहल की है। जलाशय और बांध इस राज्य के प्रमुख अन्तस्थलीय खुले जल संसाधन हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्रीय अन्तस्थलीय मात्स्यिकी अनुसन्धान संस्थान बैरकपुर के निदेशक डॉ. बि. के. दास के नेतृत्व में चयनित छोटे जलाशयों में प्राथमिक मछुआरा सहकारी समितियों (पीएफसीएस) की मदद से मछली उत्पादन वृद्धि कार्यक्रम शुरू किया गया है। संस्थान ने छत्तीसगढ़ के चयनित छोटे जलाशयों में (बहेराखार, सुतियापाठ) पेन, इंजन वाले नाव कोराकल नाव और सिफ़री केज ग्रो फीड प्रदान किया है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्रीय अन्तस्थलीय मात्स्यिकी अनुसन्धान संस्थान बैरकपुर (सिफरी) ने कम लागत में मत्स्य उत्पादन को बढ़ाने के उद्देश्य से 24 से 31 मई के बीच बहेराखार, सुतियापाठ, और परलकोट जलाशय में छत्तीसगढ़ मत्स्य निदेशालय के सहयोग से एक पेनकल्चर प्रदर्शन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सिफरी के वैज्ञानिक सतीश कौशलेश, छत्तीसगढ़ मत्स्य पालन विभाग कबीरधाम और कांकेर के अधिकारीयों ने जलाशय में स्थापित पेन में मछली के बीज छोड़े। प्रदर्शन के बाद एक संवेदीकरण कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया। उन्होंने जलाशयों में मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए पेनकल्चर के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने आजीविका और पोषण सुरक्षा के लिए मछली के महत्व पर भी प्रकाश डाला।
छत्तीसगढ़ मत्स्य पालन विभाग के अधिकारीयों ने आदिवासी मछुआरों को संबोधित करते हुए कहा कि पेनकल्चर के माध्यम से जलाशय में मछली के बीज को बढ़ाया जा सकता हैं, जो न केवल जलाशय के उत्पादन में सुधार करेगा बल्कि उत्पादन की लागत को भी कम करेगा, इसके साथ ही मछुआरों की आजीविका में सुधार होगा। कार्यक्रम में मछुवा समिति सदस्य आदिवासी लाभार्थी व हितग्राही उपस्थित थे।

Bureau Chief kawardha