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राजनांदगांव। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली के तत्वाधान में छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बिलासपुर के निर्देशन एवं जिला न्यायाधीश व अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण राजनांदगांव के निर्देशन में नेशनल लोक अदालत का वर्चुअल और भौतिक उपस्थिति मोड में आयोजन किया गया। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर न्यायालयों में लंबित प्रकरणों के त्वरित निराकरण के लिए राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया गया है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय से लेकर तहसील स्तर तक के न्यायालयों में लोक अदालत आयोजित हो रहे हैं। राजनांदगांव, मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी एवं खैरागढ़-छुईखदान -गण्डई जिले के प्रकरणों को निराकरण के लिए चिन्हित किया गया है। शुक्रवार को जिला न्यायाधीश व अध्यक्ष श्री विनय कुमार कश्यप के नेतृत्व में नेशनल लोक अदालत के आयोजन की सभी तैयारी पूर्ण कर ली गयी थी।
नेशनल लोक अदालत आयोजित करने के लिए कुल 43 खंडपीठों का गठन किया गया था। इस लोक अदालत में 17 हजार 299 मामलों का सफलतापूर्वक निपटान किया गया। निपटान किए गए मामलों में कुल 14 हजार 721 मामले प्री-लिटिगेशन चरण के थे और 2 हजार 578 मामले ऐसे थे जो विभिन्न न्यायालयों में लंबित थे, निपटान राशि लगभग 1 करोड़ 17 लाख 22 हजार 672 रूपए थी। नेशनल लोक अदालत में अपराधिक राजीनामा योग्य मामले, मोटर वाहन दुर्घटना दावा से संबंधित मामले, धारा 138 एनआई एक्ट से संबंधित मामले अर्थात चेक से संबंधित मामले, वैवाहिक विवाद के मामले, श्रम विवाद के मामले, बैंक ऋण वसूली वाद, रूपए वसूली वाद, विद्युत बिल एवं टेलीफोन बिल के मामले, भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले, राजस्व न्यायालय के मामले एवं अन्य राजीनामा योग्य वाद आदि से संबंधित मामलों की सुनवाई की गई।


5 वर्ष पुुराने मामले का नेशनल लोक अदालत में हुआ निपटारा
पीठासीन अधिकारी श्रीमती अंजली सिंह के निरंतर प्रयासों से 5 वर्ष पुराने प्रकरण का अंतिमत: नेशनल लोक अदालत के माध्यम से पक्षकारों के मध्य राजीनामा के आधार पर निराकरण किया गया। प्रकरण में पक्षकारों ने विशेष रूप से आहत ने न्यायालय के समक्ष यह कथन किया कि वे स्वेच्छा तथा बिना किसी डर, दबाव के राजीनामा के आधार पर प्रकरण को समाप्त करना चाहते हैं और इस प्रकार हस्तगत प्रकरण का खुशनुमा निराकरण हुआ। इस तरह के मामले सटीक उदाहरण है कि यदि न्यायालय तथा अधिवक्तागण सकारात्मक रूप से प्रयास करें और लोक अदालत जैसे मंच आते रहे, तो उसका परिणाम निश्चित ही न्यायालय तथा पक्षकारों के समय की बचत होगी।

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