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  • रिसर्च बर्डन नहीं होनी चाहिए : डॉ तपेश
  • शोध पत्र की मौलिकता आवश्यक है : डॉ : विनोद सेन
  • रिसर्च हब बने दिग्विजय महाविद्यालय : प्राचार्य डॉ के एल टांडकेर
  • उच्च शिक्षा में रिसर्च आवश्यक : डॉ कुर्रे

राजनांदगांव। शोध पत्र लेखन एवं प्रकाशन विषय पर शासकीय महाविद्यालय में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित हुई जिसमें मुख्य अतिथि डॉ. एच. के. पाठक ने कहा कि 1923 में रेडमंड और मूरी वैज्ञानिकों की पुस्तक “रोमांस ऑफ रिसर्च” में सर्वप्रथम रिसर्च की परिभाषा दी। इसके अनुसार यदि हम कुछ नई जानकारी प्राप्त कर रहे हैं या नई खोज कर रहे हैं तो उसे शोध कहेंगे। शोध में हमें गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में जीडीपी का 0. 69 प्रतिशत ही रिसर्च के लिए प्राप्त होता है‌। जबकि अन्य देशों में कहीं ज्यादा है।
प्रथम तकनीकी सत्र के वक्ता डॉ विनोद सेन ने कहा कि निरंतर लेखन कार्य करते रहना चाहिए। जिससे लेखन का अभ्यास बना रहे और शोध कार्य उच्च स्तरीय हो। शोधार्थी का विचार हमेशा मौलिक होना चाहिए जिससे साहित्यिक चोरी से बचा जा सके।
द्वितीय तकनीकी सत्र के विषय विशेषज्ञ डॉ. तपेश चंद्र गुप्ता के कहा कि रिसर्च को बर्डन के रूप में न लेकर हाॅबी के रूप में लेने से काम आसान हो जाता है। प्रश्नोत्तरी तैयार करने के लिए बॉडी लैंग्वेज पर ध्यान देना आवश्यक है। शोध के लिए विदेशी लेखकों की पुस्तकों की अपेक्षा स्थानीय शोधकर्ताओं के ग्रंथों से संदर्भ लेना चाहिए। शोध के अंत में यह जरुर लिखा जाए कि भविष्य में शोध की संभावना है।
द्वितीय तकनीकी सत्र के दूसरे वक्ता डॉ अभिषेक कुमार मिश्रा ने कहा कि नई चीज सीखना और देना ही रिसर्च है‌। शोध के लिए अपनी मौलिक भाषा का प्रयोग करना चाहिए। शोध से नए परिणाम प्राप्त होने चाहिए।
प्राचार्य डॉ. के. एल. टांडेकर ने कहा कि शोध पत्र प्रकाशन के संबंध में अनेक भ्रांतियां हैं जिससे इस क्षेत्र में कार्य करने में शोधार्थियों को कठिनाई होती है। इस कार्यशाला से उनकी भ्रांतियां दूर होगी और महाविद्यालय रिसर्च हब के रूप में विकसित होगा। उन्होंने महाविद्यालय में हो रहे रिसर्च कार्यों का उल्लेख किया। छत्तीसगढ़ राज्य वित्त आयोग, छत्तीसगढ़ राज्य योजना आयोग, यूजीसी, आईसीएसएसआर आदि संस्थाओं से महाविद्यालय को प्राप्त परियोजनाओं की जानकारी दी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. एस. के. पाठक, कुलपति भारती विश्वविद्यालय दुर्ग, विशिष्ट अतिथि, डॉ. विनोद सेन प्राध्यापक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय अमरकंटक मध्य प्रदेश, विशिष्ट वक्ता, डॉ. अभिषेक मिश्रा, सहायक प्राध्यापक, साइंस कॉलेज दुर्ग रहे। यह कार्यक्रम महाविद्यालय की शोध समिति एवं आईक्यूएससी के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ। कार्यशाला के संयोजक डॉ. डी.पी.कुर्रे थे।, संचालन डॉ.नीलू श्रीवास्तव, डॉ. शंकर मुनि राय, डॉ प्रमोद महीश, डॉ. डी.के. वर्मा ने किया। इस अवसर पर प्रतिभागी डॉ. बी.एन. जागृत एवं शोधार्थी शालीन कुमार ने अपने- अपने अनुभव व्यक्त किये।
कार्यक्रम के अंत में डॉ. दिव्या देशपांडे ने सभी के प्रति आभार ज्ञापित किया। प्रत्येक समितियों ने अपना-अपना कार्य सुचारू रूप से संपादित किया। इस कार्यशाला में बड़ी संख्या में प्राध्यापकों, सहा प्राध्यापकों, अतिथि व्याख्याताओं एवं शोधार्थियों ने सहभागिता की।

By Amitesh Sonkar

Sub editor

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