फोटाे: 1. वरिष्ठ साहित्यकार एवं इतिहासकार श्री गणेश शंकर शर्मा से चर्चा करते कर्णकांत श्रीवास्तव, 2. वर्तमान में खंडहर में तब्दील हो चुकी बीएनसी मिल।
राजनांदगांव। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। यह खास अवसर स्वतंत्रता संग्राम की उन यादों को ताजा कर रहा है, जब देश के एक-एक कोने, गांव, शहर से भारत माता के लाल आजादी का नारा लगाते हुए आगे आए और एक साथ मिलकर देश को अंग्रेजो से आजाद कराया। उस दौर के राष्ट्रीय आंदोलन में नांदगांव स्टेट का भी अमूल्य योगदान रहा है। आज अस्तित्व खो चुके बीएनसी मिल से कभी नांदगांव स्टेट के पहले स्वतंत्रता जन आंदोलन की शुरुआत हुई थी। आखिर मजदूरों का विरोध आगे चलकर राष्ट्रीय आंदोलन में कैसे परिवर्तित हुआ, इस रोचक इतिहास को साझा किया शहर के वरिष्ठ साहित्यकार एवं इतिहासकार श्री गणेश शंकर शर्मा जी ने। “एक्स रिपोर्टर” के चीफ एडिटर कर्णकांत श्रीवास्तव से बातचीत में उन्होंने राजनांदगांव के इतिहास से जुड़ी ऐसी बाते बताई, जिसे जानने के बाद आप भी गौरवान्वित महसूस करेंगे।
(वरिष्ठ साहित्यकार एवं इतिहासकार श्री गणेश शंकर शर्मा जी से चर्चा और उनके द्वारा रचित पुस्तक राजनांदगांव जिले का सांस्कृतिक वैभव के आधार पर कुछ अंश)
स्थानीय सी.पी. मिल जो बाद में कलकत्ता की शॉवालेस कम्पनी द्वारा खरीदे जाने के बाद बीएनसी मिल (बंगाल नागपुर कॉटन मिल) कहलाती थी, के मजदूरों पर अमानवीय अत्याचार से ठाकुर प्यारेलाल सिंह दुखी थे। 1917 से ही वे मजदूरों का संगठन करने लगे थे। मिल मजदूरों से 13-14 घंटे काम लिया जाता था। छुट्टियों का कोई प्रश्न ही नहीं था। कभी भी किसी भी मजदूर को निकाल देना आसान था, फिर मजदूरी भी 6-7 रूपये माहवार थी। ठाकुर साहब ने अंग्रेज मिल्कियत की इस मिल के मालिकों के खिलाफ संघर्ष का बिगुल छेड़ दिया। यद्यपि यह मजदूर आंदोलन के रूप में ही जाना जाता है पर भीतर ही भीतर राजनांदगांव में राजनीतिक चेतना की चिंगारी सुलगाने में इसका महत्वपूर्ण स्थान है अतः कुछ लोग इसे जिले में राष्ट्रीय जनजागृति का आधार भी मानते हैं।
भारत की पहली सबसे लंबी हड़ताल (21 फरवरी 1920 से 6 अप्रैल 1920)
ठाकुर साहब ने मिल मजदूर यूनीयन की स्थापना की । जिसके अध्यक्ष ठाकुर साहब तथा उपाध्यक्ष शिवलाल मास्टर तथा मंत्री राजूलाल शर्मा थे। इस समय मिल में लगभग 2000 लोग काम कर रहे थे। यूनीयन ने कार्य की अवधि आठ घंटे, कार्य पद्धति में सुधार तथा वेतन वृद्धि को लेकर मैंनेजमेन्ट को मेमोरेन्डम दिया। इसी के साथ ही सभा हेतु पुलिस सुप्रिन्टेन्डेट से अनुमति मांगी, जिसे अस्वीकार कर दिया गया। पं . सुंदरलाल शर्मा भी यहाँ आये हुये थे। वे राजूलाल शर्मा के साथ पुलिस सुप्रिन्टेन्डेट से मिले तब यह बात मानी गई कि 50 से 60 लोग इकट्ठे होकर सभा कर लें, अतः स्थानीय कामठी लाईन स्थित राजूलाल जी शर्मा के निवास के पीछे छोटी सी जगह पर सभा हुई जिसमें जिसमें मजदूर यूनियन की विधिवत स्थापना हुई। इसमें 26 मजदूरों तथा तीन नागरिकों को लिया गया। 21 फरवरी 1920 को हड़ताल आरंभ हुई। यह हड़ताल 37 दिनों तक चली। यह देश की प्रथम मजदूर हड़ताल थी जो इतने लंबे समय तक चली। इस हड़ताल की व्यापक चर्चा देश में हुई। अंतत: समझौता हुआ। 6 अप्रैल 1920 को हड़ताल समाप्त हुई, मजदूरों की शर्ते मान ली गई। यह मजदूरों की विजय थी। चूंकि मिल में अंग्रेजों का मैंनेजमेंट था इसलिए बार-बार पुरानी स्थिति दोहराई जाती रही और हड़ताल होती रही। इससे लोग अंग्रेजों के विरूद्ध आवाज उठाने लगे।
स्टेट काँग्रेस की स्थापना से राष्ट्रीय आन्दोलन तक
राजनांदगांव की तीनों रियासतों, नाँदगाँव, खैरागढ़, छुईखदान में जन आन्दोलन की चिन्गारी ने शीघ्र ही राष्ट्रीय आन्दोलन का रूप ले लिया। तत्कालीन बीएनसी मिल के मजदूर आन्दोलन से यहाँ राजनीतिक चेतना आई। तत्कालीन मध्यप्रदेश में 14 फरवरी 1938 को स्टेट कांग्रेस की स्थापना हुई तथा 22 नवम्बर 1938 से नांदगांव में भी स्टेट कांग्रेस की स्थापना कामरेड रूईकर ने की। कलकत्ता में 1928 के अधिवेशन में रियासतों में आन्दोलन की स्वीकृति प्रदान की गई थी।
नांदगांव स्टेट में जंगल सत्याग्रह (1939)
नांदगांव जिले के पश्चिमी भाग में फैली मैकल की पहाड़ियाँ वर्तमान जी.ई. रोड़ के पास समाप्त हो जाती हैं, वहीं से छोटी-छोटी जंगली पहाड़ियाँ आगे बढ़ती है, जिनके स्थानीय नाम दिये गये हैं, बादराटोला के पास ऐसी ही एक पहाड़ी है जिसे चेपटी पहाड़ी कहा जाता हैं, इस पहाड़ी पर बॉस , सागौन, सरई आदि के अतिरिक्त सघन झाड़ियाँ है इसी के निकट बादराटोला स्थित, वर्तमान में इसका क्षेत्रफल मात्र 366. 826 हेक्टेयर है। 1939 में इसकी जनसंख्या 1000 से भी कम थी। इसके पास ही घुमरिया नदी बहती हैं। इस छोटे से गांव के कृषक वन अधिकारियों से परेशान थे। गांव के लोग अपनी सामान्य जरूरतों के अनुरूप लकड़ी बांस आदि जंगल से काटकर ले आते थे, वन अधिकारी उन्हें पकड़कर “जबराना” राशि वसूल करते थे। कभी उनके मवेशी जंगल में प्रवेश कर गये हों तब वन अधिकारियों को घूस भी देनी पड़ती थी, इस समस्या से निजात पाने के लिए बादराटोला के लोगों ने जंगल सत्याग्रह करने का निश्चय किया।
नांदगाँव में व्यक्तिगत सत्याग्रह
जंगल सत्याग्रह के संदर्भ में कन्हैयालाल जी अग्रवाल ने लिखा है कि “आन्दोलन को गति देने के लिए कांग्रेस ने जंगल सत्याग्रह का ऐलान किया व सभाओं पर प्रतिबंध कानून तोड़ने के लिए सत्याग्रहियों के जथ्थे गिरफ्तारी के लिए भेजने का कार्यक्रम बनाया गया, इन्ही जथ्थों का नेतृत्व करते हुए पं. राजूलाल शर्मा, श्री चम्पालाल जी पारख राजनांदगांव शहर में गिरफ्तार किये गये। आन्दोलन का संचालन करने के लिए प्रथम डिक्टेटर श्री चम्पालाल जी पारख को नियुक्त किया गया। चम्पालाल जी ने श्री रामाधार स्वर्णकार को द्वितीय डिक्टेटर नियुक्त किया, तृतीय डिक्टेटर श्री कस्तूरचंद जैन थे, चौथा डिक्टेटर कन्हैयालाल जी अग्रवाल थे। आन्दोलन का संचालन करने के लिए नांदगांव की सीमा पर अंजोरा, बांधाबाजार तथा छुरिया में कार्यालय भी खोले गये। घोघरे के निवासी विद्या प्रसाद जी यादव तथा बिशेसर प्रसाद जी यादव छुरिया क्षेत्र में सर्वाधिक सक्रिय थे। “छुरिया क्षेत्र जंगली होने के कारण रियासत के शासन काल में किसानों पर बहुत जुल्म होता था, जंगल विभाग के कर्मचारी किसानों को बहुत सताते थे, शिकार के समय हॉके के लिये उनसे बेगार ली जाती थी। जंगल सत्याग्रह को दबाव पूर्वक रोकने के लिए स्टेट ने गांव-गांव में पुलिस टुकड़ियाँ भेजकर जुल्म ढाना आरम्भ कर दिया। उनकी अकारण पिटाई होती और आर्थिक दण्ड भी कड़ाई से वसूला जाता, दुर्ग के कांग्रेसी नेता क्रमशः श्री रत्नाकर झा, मोहनलाल जी, बाकलीवाल, श्री तामस्कर, श्री वासुदेव देशमुख, श्री केशवलाल गोमाश्ता, श्री नरसिंह दास जी अग्रवाल, श्री सराधू राय जी कौड़ीकसा ने आन्दोलन में साथ दिया। इस आन्दोलन से सम्बधित सभाएं नांदगाँव रेल्वे स्टेशन पर होती थी। इस तरह नांदगांव स्टेट ने स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी निभाई।
