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Science & Technology reporter: भारतीय वैज्ञानिक ने की खोज, समुद्री शैवाल अगर से निर्मित उन्नत मरहम पट्टी मधुमेह के घावों का इलाज कर सकती है और प्रतिस्पर्धी लागत पर पुराने घावों का को भी ठीक कर सकती है, पढ़िए पूरी खबर…

xreporter news: 06 AUG 2021 by PIB Delhi
एक भारतीय वैज्ञानिक ने संक्रमित मधुमेह के घावों और पुराने घावों से पीड़ित रोगियों के उपचार के लिए, समुद्री शैवाल अगर से प्राप्त एक प्राकृतिक बहुलक (नेचुरल पॉलीमर), अगारोज पर आधारित एक उन्नत घाव मरहम पट्टी (ड्रेसिंग ) विकसित की है। यह स्वदेशी ड्रेसिंग पुराने घाव वाले रोगियों के लिए किफायती लागत पर प्रभावकारी मरहम पट्टी  (ड्रेसिंग) उपलब्ध कराने के साथ ही इसके व्यावसायिक उपयोग को बढाने  का मार्ग भी प्रशस्त करेगा। इस जैव  विखंडनीय  असंक्रामक  मरहम पट्टी (बायोडिग्रेडेबल, नॉन-इम्यूनोजेनिक वाऊंड  ड्रेसिंग) को एक स्थिर एवं टिकाऊ स्रोत से प्राप्त करने के बाद  भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर के डॉ विवेक वर्मा ने आयोडीन और साइट्रिक एसिड जैसे कई योजक अणुओं को जोड़कर विकसित किया है। इस कार्य योजना को  विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकी कार्यक्रम से आवश्यक  सहायता प्राप्त हुई थी और इसे उस ‘मेक इन इंडिया’ पहल के साथ भी जोड़ दिया गया  है जिसे  राष्ट्रीय पेटेंट मिल चुका  है और इसे चूहे के इन विट्रो और इन-विवो मॉडल पर परीक्षण किए जाने बाद के मान्य किया गया है ।

इस अनूठी घाव ड्रेसिंग में सेरिसिन, आयोडीन और साइट्रिक एसिड जैसे कई सक्रिय अणुओं को जोड़ने की भूमिका का मूल्यांकन पुराने घावों के संबंध में उनके उपचार और रोकथाम के गुणों के परिप्रेक्ष्य  में अगर के साथ किया गया है। यह आविष्कार  विशेष रूप से  संक्रमित मधुमेह के घावों के उपचार के लिए अगर ड्रेसिंग पट्टियां (फिल्में) प्रदान करता है। घाव की गंभीरता और प्रकार के आधार पर इस ड्रेसिंग को एक पट्टी (सिंगल लेयर), दोहरी पट्टी (बाइलेयर) या अनेक पट्टी (मल्टी-लेयर) वाली हाइड्रोजेल फिल्मों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

विकसित होने की यह प्रक्रिया प्रौद्योगिकी तैयारी स्तर के तीसरे चरण में है। वर्तमान में  5 मिमी व्यास के छोटे आकार के गोलाकार घाव के साथ चूहे के मॉडल पर इस मरहम पट्टी (ड्रेसिंग) का परीक्षण किया गया है और  इसमें अभी केवल एक सक्रिय संघटक के साथ एक पट्टी (सिंगल लेयर ड्रेसिंग) शामिल है।
अगला कदम खरगोशों या सूअरों जैसे बड़े जानवरों के बड़े घावों के उपचार में इसकी प्रभावकारिता का परीक्षण करना होगा। डॉ. वर्मा सभी सक्रिय रसायनों (एजेंटों) को एकल या बहुपरत व्यवस्था में शामिल करने और इससे संबंधित विभिन्न मापदंडों का  अनुकूलन   करने की दिशा में काम कर रहे हैं। अंतिम चरण में नैदानिक ​​परीक्षण शामिल होंगे। इन चरणों के पूरा हो जाने के बाद  इस  प्रौद्योगिकी का बाजार में एकल या सभी संघटकों से भरी हुई एकल /बहुपरत मरहम पट्टी (ड्रेसिंग) सामग्री के रूप में व्यावसायीकरण किया जा सकता है।
डॉ विवेक वर्मा के अनुसार, इस उन्नत मरहम पट्टी (ड्रेसिंग) में घावों की उन्नत  देखभाल के लिए वाणिज्यिक उत्पाद में परिवर्तित होने की पूरी क्षमता है और यह प्रतिस्पर्धी कीमत पर पुराने घावों के उपचार और देखभाल के लिए एक प्रभावशाली पट्टी का उत्पादन करवा  सकता है।
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भारत में मधुमेह के घावों की उन्नत मरहम पट्टी (ड्रेसिंग) के  बाजार पर काफी हद तक विदेशी कंपनियों का एकाधिकार है। यह स्वदेशी ड्रेसिंग न केवल पुराने घाव के रोगियों के लिए लागत प्रभावी ड्रेसिंग के उत्पादन को आगे बढ़ाएगी बल्कि  इसके व्यावसायिक उपयोग को बढाने  का मार्ग भी प्रशस्त करेगी ।
अधिक जानकारी के लिए डॉ विवेक वर्मा (vverma@iitk.ac.in) पर संपर्क किया जा सकता है।

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By Karnkant Shrivastava

B.J.M.C. Chief Editor Mo. No. 9752886730

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