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फोटो-मदर एंड चाइल्ड केयर यूनिट में कुछ इस तरह बेतरतीब काम किया जा रहा है।

राजनांदगांव। CGMSC की फुस्स मॉनिटरिंग की वजह से बसंतपुर स्थित जिला अस्पताल परिसर में संचालित सौ बिस्तर मातृ-शिशु अस्पताल के ड्रेनेज सिस्टम में अब तक सुधार नहीं हो पाया है। ठेकेदार की मनमानी हावी हो चली है। यहां महज तीन से चार मजदूरों के भरोसे काम करा रहे हैं। काम कछुआ गति से चल रहा है। इसका खामियाजा अस्पताल प्रबंधन और मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। प्रसव के बाद रहने वाली महिलाओं को पुराने बिल्डिंग में शिफ्ट किया गया है।

12 करोड़ की लागत से बने मदर एंड चाइल्ड केयर बिल्डिंग का ड्रेनेज सिस्टम शुरुआत से ही खराब होता चला आ रहा है। इस बार खराब ड्रेनेज सिस्टम की सुधार के लिए सीजीएमएस से 25 लाख रुपए की स्वीकृति हुई है। इसके बाद भी सीजीएमएससी के इंजीनियर व ठेकेदार काम में लापरवाही बरत रहे हैं। वहीं कार्य को देखकर ऐसा नहीं लगता कि यहां 25 लाख रुपए खर्च की गई हो। मिली जानकारी अनुसार यहां काम करने के लिए तीन-चार कर्मचारी दुर्ग से आते हैं, जो कुछ दिन आते हैं और कुछ दिन नहीं आते। इसे देखने वाला कोई नहीं है। ऐसे में काम समय पर नहीं हो पा रहा है, जबकि अस्पताल की इमरजेंसी सेवाओं को देखते हुए कार्य को समय से पूर्ण करने की जरुरत है।

सीजीएमएससी के हर कार्य का बुरा हाल

गौरतलब है कि सीजीएमएससी द्वारा कराया जा रहा हर कार्य का बुरा हाल है। क्योंकि कॉर्पोशन के साइड इंजीनियर कभी कार्य स्थल का मुआयना करते ही नहीं है। ऐसे में ठेकेदार मनमुताबिक कार्य करते है, जिससे कार्यों में देरी के अलावा गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े हो जा रहें हैं। बड़ी बात तो यह है कि सीजीएमएससी के कार्य कहां-कहां चल रहे हैं इसकी जानकारी स्वास्थ विभाग के अफसरों को भी नहीं दी जाती है।

मेडिकल वेस्ट फेंकने से चोक हुआ ड्रेनेज

बाथरूम में भोजन के अपशिष्ट पदार्थ के अलावा कई तरह के मेडिकल वेस्ट को भी फेंक दिया जाता है। सेनेटरी पैड आदि को भी ड्रेनेज में डाल देने के कारण यह ड्रेनेज जल्दी जाम हो गया। इससे गंदे पानी का बहाव रूक गया, गंदे पानी की निकासी नहीं होने कारण परिसर में ही गंदगी फैल गई और मरीज, परिजन अस्पताल स्टाफ को बदबू से परेशान होना पड़ा।

सीलिंग गिरा, टाइल्स टूटे, पूरे वार्ड में धूल

ठेकेदार के कर्मचारी ड्रेनेज की सुधार के चक्कर में भवन के सीलिंग सहित दीवार में लगे टाइल्स को क्षतिग्रस्त कर दिए हैं। इसके अलावा वार्ड के बैड और खिड़की दरवाजे भी क्षतिग्रस्त हो गए हैं। पूरे वार्ड में धूल और गंदगी का आलम है। जबकि काम शुरू करने से पहले बैड को सुरक्षित ढंग से रखवाया जा सकता था।

 

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