महादेव सोनी नेउर:-
कवर्धा। विगत 7-8 अक्टूबर 2021 को धरमजयगढ़ जिला-रायगढ़ (छत्तीसगढ़) में पहाड़ी कोरवा, बिरहोर, कमार, बैगा, पंडो और भुंजिया समुदाय के पारंपरिक सामुदायिक मुखिया, समुदाय के विकास के लिए विचार-विमर्श करके महत्वपूर्ण सुझाव दिये है जिसे विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के समग्र विकास कार्यसमूह के समक्ष रख रहें हैं।
विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के समग्र विकास के लिए विशेष सुझाव इस प्रकार है:-
1. पर्यावास अधिकार के संबंध में सुझाव
इस समूह के प्रथम बैठक से ही पर्यावास अधिकार पर चर्चा किया गया है। वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA) के धारा 3 (1)(e) में महत्वपूर्ण प्रावधान दिया गया है जिसे पर्यावास अधिकार Habitat Rights बोला जाता है। यह सिर्फ कृषि पूर्व समुदाय, विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के लिए अप्लीकेबल है। पर्यावास अधिकार वनों पर अधिकार ही नहीं है बल्कि विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के जंगल पर पूर्ण अधिकार, अस्मिता, अस्तित्व, पहचान, संस्कृति और विकास से जुड़ा है।
देश में पर्यावास अधिकार पर व्यवस्थित कार्यवाही हो इसके लिए आदिवासी कार्य मंत्रालय, भारत सरकार ने विशेषज्ञ समिति बनाया है। जबकि मध्यप्रदेश में पर्यावास अधिकार पर तेजी से कार्यवाही हो इसलिए प्रमुख सचिव, आदिवासी विभाग के द्वारा मध्यप्रदेश के विशेष पिछड़ी जनजाति समूह (PVTG) निवासरत जिला के सभी कलेक्टर, DFO और सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग को लिखित निर्देश जारी करते हुये पर्यावास अधिकार कार्यशाला किया है।
1:1 हमारा सुझाव है कि मध्यप्रदेश सरकार के तर्ज पर छत्तीसगढ़ सरकार विशेष पिछड़ी जनजाति समूह निवासरत जिला कलेक्टर, DFO वन विभाग और सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग को पर्यावास अधिकार की संभावना को तलाशने, पर्यावास अधिकार क्षेत्र की पहचान करने लिखित निर्देश जारी करें। कार्यशाला, प्रशिक्षण आयोजित कर पर्यावास अधिकार का ब्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए।
1:2 पूर्व में नारायणपुर जिला के अबूझमाड़ क्षेत्र का पर्यावास अधिकार की प्रक्रिया प्रारम्भ किया गया था जिसे बीच में ही रोक दिया गया है, उस प्रक्रिया को फिर से शुरू किया जाए।
1:3 वन अधिकार और सामुदायिक अधिकार के विषय पर अन्य कई कार्यसमूह बना है, इस समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर वर्जिनस खाखा का मानना है कि अन्य समितियों से पर्यावास अधिकार का सुझाव जा सकता है, चूंकि जंगल विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के विकास, आजीविका, अस्मिता, अस्तित्व, पहचान और संस्कृति से सीधा जुड़ा है इसलिए हमारा मानना है कि विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के समग्र विकास के कार्यसमूह से भी पर्यावास अधिकार का क्रियान्वयन संबंधी सुझाव जाना चाहिए।
जाति प्रमाण पत्र संबंधी सुझाव
2:1 छत्तीसगढ़ में जाति प्रमाण पत्र बनाने के लिए वंशवृक्ष बनाने की अनिवार्यता होता है और वंशवृक्ष भूमि की मालिकाना हक का दस्तावेज के आधार पर तैयार होता है। विशेष पिछड़ी जनजाति समूह परंपरागत तरीके से वनों में अस्थाई खेती करके आजीविका व जीवन निर्वाह करते रहें हैं। अस्थाई खेती को सरकार ने कभी मान्यता नहीं दिया है फलस्वरूप विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के पास अस्थाई खेती करने वाले भूमि की मालिकाना हक का दस्तावेज उपलब्ध नहीं है जिसके कारण जाति प्रमाण पत्र बनाने में मुश्किल होता है। अतः विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के लिए वंशवृक्ष दस्तावेज की अनिवार्यता समाप्त किया जाए।
2:2 जनजाति अनुसूची में अबूझमाड़िया और पहाड़ी कोरवा जाति का नाम दर्ज नहीं है जबकि अनुसूची में छत्तीसगढ़ में माड़िया और कोरवा जाति नाम दर्ज है इसलिए अबूझमाड़िया और पहाड़ी कोरवा समुदाय का जाति प्रमाण पत्र नहीं बनाया जाता है। पूर्व में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा अबूझमाड़िया और पहाड़ी कोरवा समुदाय के जाति प्रमाण पत्र बनाने में सुविधा के लिए गज़ट नोटिफिकेशन जारी हुआ था लेकिन यह नोटिफिकेशन राज्य के सभी तहसीलदार के पास नहीं पहुंचा है। अतः छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा जारी इस गज़ट नोटिफिकेशन को सभी तहसीलदार को प्रमुखता से भेजा जाए।
2:3 विशेष पिछड़ी जनजाति निवास क्षेत्र में विशेष कैंप आयोजित करके विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के जाति प्रमाण पत्र प्रमुखता से बनाया जाए।
संरक्षण सह विकास योजना (CCD) का विकेन्द्रीकरण
3:1 विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के समग्र विकास के लिए केंद्र सरकार से संरक्षण सह विकास योजना (CCD) संचालित है। इस योजना की राशि सिर्फ विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के गाँव, पारा, मोहल्ला में ही खर्च किया जाना होता है। प्रत्येक वर्ष इस योजना की राशि खर्च तो किया जाता है लेकिन इसका परिणाम दिखाई नहीं देता है। बेहतर परिणाम के लिए संरक्षण सह विकास योजना का क्रियान्वयन के लिए सूक्ष्म योजना बनाई जाना चाहिए तथा योजना निर्माण और क्रियान्वयन में पूर्ण पारदर्शिता एवं समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
3:2 संरक्षण सह विकास योजना के बेहतर परिणाम के लिए सूक्ष्म योजना निर्माण, क्रियान्वयन और नियंत्रण के लिए छत्तीसगढ़ राज्य स्तर या जिला स्तर पर सलाहकार समिति का गठन किया जाना चाहिए। सलाहकार समिति में प्रशासनिक अधिकारी सहित, स्वैच्छिक संगठन के प्रतिनिधि और समुदाय के प्रतिनिधि को शामिल किया जाना चाहिए।
विशेष पिछड़ी जनजाति समूह का समग्र सर्वेक्षण
4:1 छत्तीसगढ़ राज्य में विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के विकास के लिए विभिन्न जिला में विशेष पिछड़ी जनजाति विकास प्राधिकरण (माइक्रो प्लान ऑफिस) है समय-समय विकास प्राधिकरण द्वारा सर्वे किया जाता है। समग्र सर्वेक्षण नहीं होने से कई गाँव सर्वे से छुट गए है और छूटे हुये गाँव के विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के परिवारों को छत्तीसगढ़ शासन द्वारा संचालित विशेष योजनाओं एवं सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। अतः विशेष पिछड़ी जनजाति समूहों का समग्र सर्वेक्षण किया जायें ताकि कोई भी परिवार शासकीय योजनाओं के लाभ से वंचित न रहें।
4:2 विशेष पिछड़ी जनजाति समूह निवासरत सभी जिला में विशेष पिछड़ी जनजाति विकास प्राधिकरण का गठन किया जाए।
4:3 विशेष पिछड़ी जनजाति विकास प्राधिकरण के सर्वे से छूटे गाँव के लोगों/परिवारों को विशेष पिछड़ी जनजाति समूह का सदस्य नहीं माना जाता है। उदाहरण के लिए रायगढ़ जिला में निवास करने वाले पहाड़ी कोरवा आदिवासियों को विशेष पिछड़ी जनजाति की मान्यता नहीं है। जबकि रायगढ़ जिला के लगभग 25 ग्रामों में 4000 पहाड़ी कोरवा निवास करते हैं। अतः विशेष पिछड़ी जनजाति समूह का समग्र सर्वेक्षण कर रायगढ़ जिला के सभी पहाड़ी कोरवा को विशेष पिछड़ी जनजाति समूह का दर्जा देते हुए केंद्रीय सूची में जोड़ने की प्रक्रिया पूरा किया जाए।
4:4 विशेष पिछड़ी जनजाति समूह का परिवार आधारित आधारभूत सर्वेक्षण किया जाना चाहिए जिससे परिवारों की जरूरतों का विश्लेषण कर परिवार आधारित एवं सामुदायिक सूक्ष्म योजना तैयार किया जा सकें।
पंडो और भुंजिया जनजाति के संबंध में सुझाव
5:1 छत्तीसगढ़ राज्य में निवासरत पंडो और भुंजिया आदिवासियों को छत्तीसगढ़ शासन द्वारा विशेष पिछड़ी जनजाति समूह का मान्यता दिया गया है। लेकिन पंडो और भुंजिया को केंद्रीय सूची में जोड़ने के लिए अभी तक किसी तरह प्रक्रिया नहीं अपनाया गया है। जिससे केंद्र सरकार से मिलने वाला विशेष सहायता पंडो और भुंजिया समुदाय को नहीं मिल पाता है। अतः सभी वैधानिक प्रक्रिया पूरा करते हुए पंडो और भुंजिया जनजाति को केंद्रीय विशेष पिछड़ी जनजाति समूह की सूची में शामिल करने की प्रक्रिया पूरा किया जाए।
शिक्षा और रोजगार
6:1 वर्तमान समय में सभी विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के लोगों का प्रमुख मांग होता है कि समुदाय के पढे-लिखे युवक-युवतियों को सरकारी नौकरी दिया जाए। सरकारी नौकरी की चयन प्रक्रिया के लिए अपनाई जाने वाले प्रतियोगी परीक्षा में विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के प्रतिभागी पिछड़ जाते हैं। इसे देखते हुए अविभाजित मध्यप्रदेश शासन (मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़) एक गज़ट नोटिफिकेशन जारी किया था जिसमें तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारी के चयन प्रक्रिया को सरल करते हुए विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के कैंडीडेट यदि संबन्धित नौकरी के लिए मांगी गई शैक्षणिक योग्यता पूरा करता है तो उसे अन्य कोई प्रतियोगी परीक्षा या साक्षात्कार नहीं देना होगा, सीधी भर्ती किया जाएगा। विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के युवक-युवतियों को सरकारी नौकरी के चयन में छत्तीसगढ़ सरकार को उक्त निर्देश का पालन करना चाहिए। विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के लिए विशेष भर्ती अभियान चला कर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराया जा सकता है।
6:2 छत्तीसगढ़ के 7 विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के कुछ समुदाय का भाषा तेजी से लुप्त होता जा रहा है। अपनी भाषा बोलने वालों की संख्या भी बहुत कम बचे हैं। प्राथमिक शिक्षा में विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के बच्चे अन्य समुदाय के बच्चों के साथ पढ़ना सहज महसूस नहीं करता है। छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम जिला में बैगा इलाके में बैगा भाषा में प्राथमिक शिक्षा के अध्ययन सामग्री/पाठ्यपुस्तक तैयार कर प्राथमिक शाला में पढ़ाया जा रहा है। इसी तरह सभी विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के क्षेत्रों में स्थानीय भाषा में प्राथमिक शिक्षा प्रारंभ किया जाना चाहिए। इसमें स्थानीय युवक-युवतियों को अवसर दिया जाना चाहिए।
6:3 मौषम परिवर्तन के इस दौर में पर्यावरणीय शिक्षा की अहम अवश्यकता है। वैसे भी विशेष पिछड़ी जनजाति समुदाय जंगल और जैव विविधता का सबसे अधिक जानकार होता है। विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के पास जंगल के पेड़-पौधा, वनोपज, वनौषधियाँ और जंगल से मिलने वाले खाद्य पदार्थ संबंधी पारंपरिक ज्ञान का खजाना है और यह पारंपरिक ज्ञान अब लुप्त होता जा रहा है। पारंपरिक ज्ञान आधारित मौषम और स्थानीय पारिस्थिकीय जानकारी नई पीढ़ी को देने के लिए विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के गाँव, पारा, मोहला में “दादी का स्कूल” की परिकल्पना का क्रियान्वयन किया जा सकता है। जिसमें गाँव के जानकार बुजुर्ग के द्वारा दिन में दो या तीन घंटा अनौपचारिक शिक्षा/अनुभव एवं पारंपरिक ज्ञान की शिक्षा दिया जा सकता है।
परंपरागत कौशल आधारित पौधारोपण
7:1 बिरहोर (विशेष पिछड़ी जनजाति समूह) को माहुल (Bauhinia vahlii) बेला से ग्रामीण जीवन के रोज उपयोग होने वाले रस्सी एवं अन्य सामाग्री बनाने का विशेष कौशल है। यह बिरहोर जनजाति का जातिगत पारंपरिक व्यवसाय भी है लेकिन आजकल यह कौशल लुप्त हो रहा है और उनके रोजगार में परिवर्तन हो रहा है। इसी तरह पहाड़ी कोरवा, कमार, अबूझमाड़िया समुदाय खेती और घरेलू उपयोग में लगने वाले बांस के बर्तन बनाने में महारत हासिल है। परंतु उनके इलाके के जंगल में माहुल और बांस भी समाप्त हो चुका है। माहुल और बांस प्रजाति पुनरुत्पादन के साथ रोजगार के अवसर बने इसके लिए सभी विशेष पिछड़ी जनजाति समूह का कौशल आधारित अध्ययन करके उनके सामुदायिक जंगल में पारंपरिक उपयोग आधारित प्रजातियों का बड़े स्तर पर पौधारोपण किया जाना चाहिए। इससे विलुप्त प्रजातियों का पुनरुत्पादन हो सकेगा, जैव विविधता का संरक्षण होगा और जैव विविधता तथा पारंपरिक ज्ञान आधारित रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
7:2 आज के हालात में भोजन में पोषकता की कमी के कारण विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के इलाकों में कुपोषण एक प्रमुख समस्या बनता जा रहा है। जंगल से सैकड़ों की संख्या में अलग-अलग प्रजातियों के पत्तियाँ, फल, फूल, गोंद, जड़ एवं कंद-मूल मिलते है जिसे विशेष पिछड़ी जनजाति समुदाय बड़े चाव से खाते हैं। यह प्रकृतिक तो होता ही है जैविक भी होता है और पोषण से भरपूर होता है। जैसे-सिहार (Bauhinia vahlii) बीज में 27.3 ग्रा. भेलवा (Semecarpus anacardium) में 26.4 ग्रा. घोटेल (Feronia elephantum) में 7.1 ग्रा. प्रोटीन, कचनार (Bauhinia variegata) फल में 12.1 मि.ग्रा. आयरन और सिरोती (Antidesma acidum) पत्ता में 1717 मि.ग्रा. बोहारभाजी में (Cordia myxa) 1740 मि.ग्रा. कैल्शियम पाया जाता है। (पोषक तत्वों का स्रोत-भारतीय पोषण संस्थान, हैदराबाद) यह सभी प्रजातियों के फल, फूल या पत्तियाँ विशेष पिछड़ी जनजाति समूह द्वारा खाई जाती है। इसके अलावा और भी कई प्रजातियाँ है जो पोषक तत्व से भरपूर है। यह सभी बड़े वृक्षों की प्रजाति है। सभी विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के खाद्य है। ऐसे पोषक गुणों से परिपूर्ण प्रजातियों की पौधारोपण से सामुदायिक जंगल को स्थानीय परिस्थितिकीय अनुकूल प्रजातियों से “पोषण अभ्यारण्य” में तब्दील किया जा सकता है। इससे पर्यावरण और जैव विविधता का सुरक्षा होगा और विशेष पिछड़ी जनजाति समूह का जंगल प्रबंधन में नवाचार भी हो सकेगा।
अन्य बुनियादी सुविधाओं के दस्तावेज
8:1 अन्य बुनियादी सुविधाओं के लिए जरूरी दस्तावेज जैसे 1. आधार कार्ड 2. बैंक खाता 3. राशन कार्ड 4. जॉब कार्ड आदि इन सभी जरूरी दस्तावेज जो किसी भी लाभकारी योजना का लाभ लेने के लिए जरूरी होता है, अभी भी विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के सभी परिवारों/सदस्यों का नहीं बना है। विशेष पिछड़ी जनजाति इलाकों में विशेष शिविर या कैंप लगा कर सभी सदस्यों का जरूरी दस्तावेज समय पर बने यह सुनिश्चित किया जाए।
जमीन का मालिकाना हक
9:1 अविभाजित मध्यप्रदेश (मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़) में जब विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के विकास के लिए पृथक से प्राधिकरण बनाया गया था तब प्राधिकरण का प्रथम उद्देश्य था कि भूमिहीनता समाप्त करने के लिए विशेष केंद्रीय सहायता योजना की राशि से जमीन खरीद कर विशेष पिछड़ी जनजाति समूह को देना था लेकिन यह अभी तक सफल नहीं हो सका है। वन अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद 4 हेक्टेयर खेती की जमीन का मालिकाना हक दिये जाने का प्रावधान है, सरकार को प्राथमिकता के साथ विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के सदस्यों को वन अधिकार अधिनियम के तहत खेती की जमीन/वनभूमि का प्रमाण पत्र वितरण करना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
9:2 स्थान बदल कर खेती करना विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के खेती की परंपरा पूर्व से रहा है और कुछ स्थानों पर अभी भी किया जाता है। छत्तीसगढ़ सरकार भी मानते हैं कि स्थाई खेती करने वाला समुदाय बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ राज्य में रहते हैं नारायणपुर जिला के अबूझमाड़ का क्षेत्र को इसका उदाहरण दिया जाता है। अबूझमाड़िया समाज उसे पेंदा खेती, पहाड़ी कोरवा आहाल या बेवरा खेती, बैगा समाज बेवर खेती कहते है। इस तरह की खेती का सर्वेक्षण कर अस्थाई या स्थान बदल कर खेती करने वाले खेती को मान्यता दिया जाना चाहिए।
छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन और विशेष पिछड़ी जनजाति समूह
10:1 अभी हाल में छत्तीसगढ़ सरकार ने मिलेट मिशन शुरू किया है। विशेष पिछड़ी जनजाति समुदाय सदियों से मिलेट की खेती करते आ रहें हैं। छत्तीसगढ़ में खासतौर पर कोदो, कुटकी और रागी मिलेट की खेती के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है। विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के द्वारा उगाये जाने वाला कोदो, कुटकी और रागी का मूल्य निर्धारण किया जाए। तथा विशेष पिछड़ी जनजाति समुदाय के इलाकों के आँगनबाड़ी और स्कूलों में मध्यान्ह भोजन में कोदो, कुटकी और रागी आधारित रेडी तो इट का वितरण किया जाए।
10:2 कोदो, कुटकी और रागी की खेती के लिए विशेष पिछड़ी जनजाति समूह को विशेष प्रोत्साहन एवं सुविधा दिया जाए।
10:3 मिलेट (कोदो, कुटकी, रागी) की विशेष प्रोत्साहन के लिए स्थानीय रेसेपी के अनुसार सभी आँगनबाड़ी और मध्यान्ह भोजन योजना के रसोइया को विशेष प्रशिक्षण दिया जाए। और सभी आँगनबाड़ी और मध्यान्ह भोजन योजना में प्रति माह निश्चित मात्रा में कोदो, कुटकी या रागी की आपूर्ति सुनिश्चित किया जाए।
प्रधान मंत्री आवास योजना में सुधार
11:1 विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के लोग दुर्गम इलाकों में निवास करते है। विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के विशेष परिस्थिति को देखते हुए विशेष सुविधा अथवा अनुदान राशि में वृद्धि किया जाए। दुर्गम इलाका और निरक्षरता एवं साक्षरता की कमी के कारण छोटे ठेकेदार या बिचौलिया बहला-फुसला कर अप्रत्यक्ष तरीके से ठेका ले लेते हैं और कार्य अधूरा छोड़ देते है। अतः विशेष पिछड़ी जनजाति (PVTG) इलाकों में अप्रत्यक्ष ठेका पद्धति पर पूर्ण रोक लगाया जाए।

Bureau Chief kawardha