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एक्स रिपोर्टर न्यूज के लिए खैरागढ़ से नितिन कुमार भांडेकर की खास रिपोर्ट:-

खैरागढ़। खैरागढ़ उपचुनाव के दौरान सूनने को मिल रहा है कि भाजपा पार्टी पांचवी बार कोमल जंघेल पर पुनः दांव लगा सकती है। जबकि खैरागढ़ विधानसभा में भाजपा को 2018 के चुनाव में दिवंगत देवव्रत सिंह से करारी हार मिली थी। कोमल जंघेल अब तक दो बार खैरागढ़ विधानसभा से चुनाव हार चुके हैं।

वहीं सूत्रों की मानें तो भाजपा पिछले चुनाव में देवव्रत सिंह से एक हजार से कम वोट से हारे कोमल जंघेल को पुनः टिकट देकर फिर से भरोसा जता सकती है। जबकि वर्तमान में राजनांदगांव जिला पंचायत के उपाध्यक्ष विक्रांत सिंह पिछले बार की तरह इस बार भी प्रबल दावेदार के रूप में अपनी दावेदारी समर्थकों के संग कर रहे हैं। इसी सूची में गंडई के खम्मन ताम्रकार का नाम भी जोरों से सुर्खियों में हैं।

खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव के लिए कांग्रेस और भाजपा की चुनाव समिति की बैठक लगभग पूरी हो चुकी है। दोनों दलों ने कुछ चेहरों का पैनल बनाकर केंद्रीय संगठन को अंतिम मुहर लगाने हेतु भेज भी दिया है। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों की माने तो कोमल जंघेल को फिर से उम्मीदवार बनाया जा सकता है।

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार गिरवर जंघेल तीसरे स्थान पर थे और देवव्रत से करीब 18 फीसदी कम वोट पाए थे। पिछले चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के उम्मीदवार रहे देवव्रत सिंह को 61 हजार 516 और भाजपा के कोमल जंघेल को 60 हजार 646 वोट ही मिले थे। बहरहाल कांग्रेस पार्टी किसे मैदान में उतार रही है, इसकी सुगबुगाहट अभी तक नहीं मिल पाई है। हालांकि गांव-गांव में प्रसार-प्रचार करने और सरकारी योजनाओं को आमजन तक पहुंचाने का दावा करने वाले आल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस जिला अध्यक्ष उत्तम सिंह ठाकुर अपने आप को प्रबल उम्मीदवार मानकर चल रहे है।

समाजिक वर्चस्व 

खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र में सामाजिक समीकरण के अनुसार दोंनो पार्टियों के द्वारा लोधी प्रत्याशी को फिट बैठालने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। जहां समाजिक दृष्टिकोण से एक ही वर्ग द्वारा अपने ही समाज की लॉबिंग कर समाजिक प्रत्याशी को ही प्रत्याशी बनाये जाने की जुगत में नीचे से ऊपर तक के लगे हुए हैं।

समाजिक प्रत्याशियों की कमियां

हालांकि वर्तमान में दावेदारी कर रहे उम्मीदवारों की हम बात करें तो उनका पक्ष काफी कमजोर है, चाहे गिरवर जंघेल हो या कोमल जंघेल। दोनों ही गत वर्षों के चुनाव में बुरी तरीके से हार चुके हैं। वहीं संगठन ने जिनका नाम आगे किया है उनमें कुछ महिला नेत्रियों का नाम भी आगे है। जिनकी अगर हम बात करें तो जिला पंचायत चुनाव में दशमत जंघेल को विक्रांत सिंह से हार का मुंह देखना पड़ा था। वहीं यशोदा नीलांबर वर्मा भी नगर पालिका चुनाव के समय अपने वार्ड की महिला प्रत्याशी के पक्ष में कुछ खासा वोट नहीं जुटा पाई थी। जिसके चलते इनका वार्ड भी भाजपा के के खाते में चला गया है। वहीं जनपद सदस्य उपचुनाव में भी कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी के पक्ष में न तो अपना समाजिक मत दिला पाए और न ही आमजन का वोट दिला पाए थे। लिहाजा यहाँ भी हार का मुख कांग्रेस पार्टी को देखना पड़ा।

वैसे तो छत्तीसगढ़ के उपचुनाव में हमेशा सत्ता पक्ष के उम्मीदवार को ही फायदा मिलता आ रहा है। छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से हुए तीनों उपचुनाव में कांग्रेस के ही उम्मीदवार की जीत हुई है। कांग्रेस सरकार की कोशिश है कि खैरागढ़ चुनाव में भी अपनी जीत दर्ज करके अपने विधायकों की संख्या को 71 पहुंचा दें।

दोनों प्रमुख पार्टियों से आमजनता का सवाल?

जनता पूछती है कि आखिर दोनों राष्ट्रीय पार्टियां कब तक के पुराने चेहरों पर ही भरोसा जताते हुए एक ही वर्ग के उम्मीदवारों को टिकट देती रहेगी। पार्टी में नए चेहरे और भी हैं, जिन्हें अवसर देना चाहिए। आख़िर अन्य चेहरों को मौका क्यों नहीं दिया जा रहा है यहां अपने आप में गंभीर सवाल है।

इस विधानसभा के चुनाव से लेना चाहिए सीख

उदाहरण के तौर पर डोंगरगढ़ विधानसभा में आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने पाटिला परिवार को न देकर अपने विधानसभा में पुराने प्रत्याशी का चेहरा ही बदल दिया। नतीजन डोंगरगढ़ विधानसभा में आज कांग्रेस पार्टी का विधायक है। खैरागढ़ विधानसभा में भी सामान्य सीट है। जनता की माने तो यहाँ भी किसी सामान्य वर्ग के व्यक्ति को ही टिकट दिया जाना चाहिए। न कि एक जाति विशेष वर्ग के एक चेहरे को बार बार दोहराया जाना चहिए। खैर… परिवर्तन प्रकृति का नियम है। पिछली बार की तरह यदि इस बार भी प्रत्याशियों के चयन में पुनरुक्ति होती है तो नि:संदेह यह सीट भी विपक्ष के झोली में जाने से कोई नहीं रोक सकता।

आखिर इससे किसे लाभ पहुंच रहा है? 

साजा क्षेत्र में भी इस वर्ग की बहुलता अधिक है किंतु वहाँ से सामान्य वर्ग के प्रत्याशी को अब तक टिकट मिलते आया है। राजनैतिक जानकारों की माने तो यदि खैरागढ़ में सामान्य वर्ग के उम्मीदवार को टिकट मिलता है तो मोहगांव साजा क्षेत्र में बेशक़ उस क्षेत्र में बहुलता रखने वाले उसी वर्ग को ही अवसर मिलेगा। ये बात तो तय है। जनता की माने तो कुछ प्रभावशाली लोग इस विधानसभा में जानबूझकर का एक व्यक्ति विशेष वर्ग को आगे कर रहे हैं ताकि उनकी सीट सुरक्षित रह सके।

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