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गौरवान्वित छत्तीसगढ़ : खैरागढ़ में कुलपति ममता चंद्राकर का संगीतमय अभिनन्दन, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार की घोषणा के बाद लोकसंगीत विभाग की मनमोहक प्रस्तुति

इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के खाते में एक साथ कई उपलब्धियां, पद्मश्री ममता चंद्राकर के अतिरिक्त युवा गायक डॉ दिवाकर कश्यप भी होंगे पुरस्कृत

खैरागढ़/कवर्धा। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार की घोषणा होते ही यूं तो पूरे छत्तीसगढ़ में खुशी का वातावरण है, क्योंकि उस सूची में 3 नाम यहीं से शामिल हैं। लेकिन खैरागढ़ में यह खुशी दोगुनी इसलिए दिख रही है, क्योंकि खैरागढ़ स्थित ऐतिहासिक संस्थान इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति पद्मश्री डॉ. मोक्षदा (ममता) चंद्राकर और इसी विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर (गायन) डॉ. दिवाकर कश्यप (गायक कश्यप बंधु) जैसे 2 नाम एक साथ गौरवान्वित कर रहे हैं।

स्वाभाविक रूप से, विश्वविद्यालय परिसर इस समय हर्ष और उल्लास का साक्षी बन रहा है। इसी अवसर पर विश्वविद्यालय के लोक संगीत विभाग द्वारा साप्ताहिक कार्यक्रम ‘कला चौपाल’ की भी शुरुआत की गयी। इससे लोक संगीत के विद्यार्थियों को अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन के लिए नियमित मंच प्राप्त हो सकेगा, जो मूल्यांकन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होगा। संयोग ऐसा बना कि उधर कुलपति लोक संगीत के क्षेत्र में किए गए अपने उल्लेखनीय कार्यों के लिए संगीत नाटक अकादमी के प्रतिष्ठित पुरस्कार की सूची में चयनित हुईं, और इधर लोक संगीत के विद्यार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच की शुरुआत हुई। इस संयोगपूर्ण अवसर को लोक संगीत विभाग के विद्यार्थियों ने अपनी प्रस्तुतियों से और भी दिलचस्प बना दिया। प्रसन्नता और गौरव के सुखद वातावरण में कुलपति डॉ चंद्राकर का सम्मान किया गया। स्वागतीय उद्बोधन में विभाग के डीन डॉ. योगेंद्र चौबे ने कुलपति डॉ चंद्राकर को परफॉर्मिंग आर्ट की साक्षात उदाहरण निरूपित करते हुए कहा कि कला के विद्यार्थियों को उनसे सीख लेनी चाहिए। उन्होंने ‘कला चौपाल’ शुरू करने के उद्देश्य को विस्तार से बताया। कुलसचिव प्रो डॉ आईडी तिवारी ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार समेत अनेक उपलब्धियों से विश्वविद्यालय के साथ-साथ पूरे छत्तीसगढ़ को हर्ष और गौरव की अनुभूति देने के लिए कुलपति डॉ मोक्षदा (ममता) चंद्राकर के प्रति आभार व्यक्त किया।

संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार की घोषणा के बाद पहली बार स्टूडेंट्स को संबोधित कर रहीं कुलपति डॉ ममता चंद्राकर ने अपनी उपलब्धि का श्रेय माता-पिता, परिवार, छत्तीसगढ़ के समस्त दर्शकों और श्रोताओं को दिया। उन्होंने कहा कि मैं इस पुरस्कार को अपने दिवंगत भाई और आल इंडिया रेडियो के सुप्रसिद्ध एनाउंसर रहे स्व. लाल रामकुमार सिंह को समर्पित करती हूँ। यह संयोग है कि स्व लाल रामकुमार सिंह जिस खैरागढ़ की धरती के निवासी थे, उसी धरती पर कला-संगीत की सेवा करते हुए मुझे यह पुरस्कार मिलने जा रहा है।

कुलपति ने लोकसंगीत विभाग द्वारा शुरू किये गए कला चौपाल की प्रशंसा की। उन्होंने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों से अपील की, कि वे सपने देखें, सपनों को पूरा करने के लिए जी-तोड़ मेहनत करें। उन्होंने कहा कि परफार्मिंग आर्टिस्ट के भीतर कभी-कभी भय का होना ज़रूरी होता है, इससे अति आत्मविश्वास से बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि परफार्मिंग आर्टिस्ट को अपना आत्मविश्वास बनाये रखने के लिए लगातार अभ्यास करना चाहिए।

कार्यक्रम का संचालन लोक संगीत विभाग के अतिथि प्राध्यापक डॉ परमानन्द पांडेय ने किया, वहीं सहायक प्राध्यापक डॉ दीपशिखा पटेल ने आभार प्रकट किया। कार्यक्रम में कला मर्मज्ञ, सुविख्यात फिल्म निर्माता और निर्देशक प्रेम चंद्राकर, अधिष्ठाता प्रो डॉ काशीनाथ तिवारी, प्रो डॉ नीता गहरवार, प्रो डॉ राजन यादव, असिस्टेंट रजिस्ट्रार राजेश कुमार गुप्ता, पीआरओ विनोद डोंगरे, लोक संगीत विभाग के सभी शिक्षकगण, संगतकार, छात्र-छात्राएं, समस्त कर्मचारी इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने।

By Rupesh Mahobiya

Bureau Chief kawardha

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