IMG-20241026-WA0010
IMG-20241026-WA0010
previous arrow
next arrow

कबीरधाम के जंगलों में भेड़ वालो का आतंक, हरा भरा पेड़ कटाई कर चराई करते हैं, वन अफसर मौन

कवर्धा। मानसून के आगमन के साथ जिले के जंगलों में राजस्थानी , गुजराती पशु भेड़ बकरियां चरवाहों का भी आगमन दिखाई दे रहा है। कबीरधाम जिले के जंगलों में भेड़-बकरी चरवाहे ने हरे-भरे पौधे को काट देते है। जंगलों और मैदानी इलाकों में राजस्थान, गुजरात के ऊंट-भेड़ों का डेरा यहां कई सालों से हैं। जहां इन लोग अपने पशुओं को खिलाने के नाम पर हरे-पौधे वनस्पति को काट रहे हैं। इतना ही नहीं के स्थानीय वन महकमें व प्रशासन का संरक्षण से वनमाफिया भी वनों की कटाई कर रहे हैं, लेकिन वन विभाग कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर रहा है। जहां जिले के वासियों को वन विभाग के खिलाफ जमकर आक्रोश देखने को मिल रहा है साथ ही वनों की रकबा भी प्रति वर्ष कम हो रहा है ।

जंगल ठूठ में हो रहा है तब्दील

जिले के बोड़ला, पंडरिया और सहसपुर लोहारा विकासखंड के वन परिक्षेत्र में कुछ दिनों बाद बड़ी संख्या में राजस्थानी ऊंट देखे जा सकते है। ऊंचाई अधिक होने के कारण ऊंट बड़े पेड़ों की हरियाली चट कर देते है। और भेड़ बकरी छोटे पेड़ों की हरियाली। इन ऊंटों और भेड़ों का झुड़ जहां से निकला जाता है वहां पेड़ों में ठूंठ और जमीन पर बिना पत्तों की डंगाल नजर आती है। बावजूद इसके वन विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी इसे रोकने में के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठाते । जंगलों में वनस्पतियां बड़ी तेजी से नष्ट होती जा रही है। जिस स्थान से इन ऊंटों और भेड़ों का झुंड़ गुजरता है वहां हरियाली दिखाई नहीं देती है।

प्रतिवर्ष रहता है डेरा

बीते कुछ सालों से राजस्थान और गुजराज से आने वाले ऊंट और भेड़ वालों यहां जमे हुए है। बोड़ला, सहसपुर लोहारा, पंडरिया, अंचलों में भेड़ वालों के चलते वनों और वनस्पतियों को काफी नुकसान हो रहा है। वनवासी अंचलों में जहां तहां उनके डेरे दिखाई देने लगे है। एक-एक डेरे में हजारों की संख्या में भेड़ें रहती है। वनवासियों के अनुसार जिन स्थानों पर इनके डेरे ठहरते हैं और भेड़ें बैठती है वहां घास तक नहीं जमती। दूसरी ओर भेड़ों को खिलाने के लिए उनके चरवाहे जंगल के झाड़ों को काट देते हैं इससे जंगलों में कर्रा, धवड़ा, बबूल जैसे झाड़ों के ठूंठ दिखाई देने लगे हैं।

औषधी पौधे हो रहे हैं विलुप्त

वनवासियों के द्वारा आज भी मेडिकल और अस्पताल बहुत कम मात्रा में जाते है । उनके पास सभी प्रकार के बीमारियों का इलाज जड़ी बूटियों से ही ठीक कर लेते है लेकिन भेड़ बकरियां ऊंट के चलते कई महत्वपूर्ण वनस्पतियां विलुप्त होने के कगार पर है। कुछ साल पहले चरौहा नामक झाड़ियों की भरमार रहती थी जो अब समाप्ति की ओर है।

वनवासीयो का कहना है कि यदि ऊंट भेड़ वालों पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो आने वाले कुछ वर्षों में वन और वनस्पतियां नष्ट हो जाएगी। जंगल क्षेत्रों में वन विभाग के रेंजर और अनुविभागीय अधिकारी और वन विभाग के कर्मचारी रहते है लेकिन अंचल के लोगों को कभी भी इन अधिकारियों की सक्रियता जंगलों की सुरक्षा के लिए दिखाई नहीं देती। इसी का फायदा उठाते हुए चरवाहों ने वनांचल में अपना डेरा जमाना प्रारंभ कर दिया है। वनांचलवासी जब इसका विरोध करते हैं तो उनके द्वारा भी धौंस जमाते हुए विवाद करने पर उतारू हो जाते हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि कहीं ना कहीं वन विभाग के कर्मियों का इन्हें संरक्षण प्राप्त है। इसके कारण बेखौफ होकर जंगलों में घुसकर पेड़ पौधों को चारागाह बनाकर नष्ट कर रहे हैं।

By Rupesh Mahobiya

Bureau Chief kawardha

error: Content is protected !!